
देहरादून: गहनों की बात आते ही सोना, चांदी और हीरे का नाम जेहन में आता है, लेकिन अब फैशन बदल रहा है। उत्तराखंड में बांस (बैंबू) और उसकी प्रजाति रिंगाल से बने ज्वेलरी प्रोडक्ट्स का नया बाजार तैयार हो रहा है। इन प्रोडक्ट्स की डिमांड न केवल भारत में बल्कि अमेरिका, चीन और ओमान जैसे देशों में भी बढ़ रही है।
बांस से बने आभूषण: नया फैशन ट्रेंड
बांस के आभूषण महिलाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। उत्तराखंड में इस नवाचार को बढ़ावा देने के लिए बैंबू बोर्ड और जायका ने देहरादून, काशीपुर और हल्द्वानी में 7 दिवसीय ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए। इन सत्रों में महिलाओं और पुरुषों को बांस की ज्वेलरी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।
त्रिपुरा से आए विशेषज्ञ दे रहे ट्रेनिंग
इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए त्रिपुरा के विशेषज्ञ उत्तराखंड आए और उन्होंने महिलाओं को इस कला में निपुण बनाया। मास्टर ट्रेनर्स का कहना है कि भारत में बांस के आभूषणों का बड़ा बाजार है, लेकिन मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पा रहा।
उत्तराखंड के गांवों से महिलाओं की भागीदारी
उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी, बागेश्वर और चंपावत जैसे पहाड़ी इलाकों की महिलाएं भी इस ट्रेनिंग का हिस्सा बनीं। टिहरी की आरती गुनसोला का कहना है कि इस हुनर को सीखने के बाद वे उत्तराखंड में इसका बाजार बढ़ाने और अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित करने का काम करेंगी।
80% तक प्रॉफिट का अनुमान
विशेषज्ञों के अनुसार, बांस की ज्वेलरी बनाने में 80% तक का लाभ संभावित है। एक ₹300 का बांस का डंडा, ₹1 लाख तक के प्रोडक्ट्स बना सकता है। इस बड़े मुनाफे ने कई लोगों को इस क्षेत्र में संभावनाएं तलाशने के लिए प्रेरित किया है।
ग्लोबल मार्केट से जुड़ने की तैयारी
बैंबू बोर्ड और जायका उत्तराखंड में न केवल ज्वेलरी प्रोडक्ट्स का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, बल्कि ग्लोबल मार्केट तक इसे पहुंचाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं। इसके लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सहारा लिया जाएगा।
बांस की खेती पर भी ध्यान
उत्तराखंड में बांस की कमी को देखते हुए रिंगाल की खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई जा रही है। बांस के प्लांटेशन के जरिए रॉ मटेरियल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी, ताकि इस उद्योग को और गति मिल सके।
बांस की ज्वेलरी का यह प्रयोग न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रहा है, बल्कि उत्तराखंड की पहचान को भी वैश्विक स्तर पर पहुंचा रहा है।