इगास बग्वाल पर देवभूमि के रंग में रंगे दिल्ली के वीआईपी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के परंपरागत त्योहार इगास बग्वाल के अवसर पर बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के आवास पर जाकर इस पर्व का उल्लास साझा किया। उनके साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, योग गुरु बाबा रामदेव और बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री सहित कई गणमान्य अतिथि भी शामिल हुए। पीएम मोदी ने इस मौके पर उत्तराखंडवासियों को इगास पर्व की शुभकामनाएं दीं और इस पर्व को मनाने के महत्व पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री मोदी का बलूनी के आवास पर भव्य स्वागत किया गया, जहां उत्तराखंड की सिंगर प्रियंका मेहर और उनकी टीम ने पारंपरिक गीतों और नृत्य के माध्यम से देवभूमि की समृद्ध संस्कृति का रंग बिखेरा। पारंपरिक वेशभूषा में सजी हुई महिलाओं और कलाकारों ने झोड़ा-चांचरी गीतों पर नृत्य करते हुए उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत किया। इस दौरान ‘भैलो’ जलाकर और ढोल-दमाऊं की गूंज के साथ उत्तराखंड की वीरता और परंपरा का उत्सव मनाया गया।
दिल्ली सरकार ने भी मनाया इगास पर्व, उत्तराखंड की संस्कृति का किया सम्मान
दूसरी ओर, दिल्ली सरकार ने भी इस पर्व को विशेष तरीके से मनाया। पटपड़गंज विधानसभा में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता मनीष सिसोदिया ने उत्तराखंडवासियों को पर्व की बधाई दी। सिसोदिया ने कहा कि इस पर्व के माध्यम से उन्हें उत्तराखंड की वीरता, संस्कृति और मिट्टी की महक का सम्मान अनुभव हुआ। कार्यक्रम में कई अन्य गणमान्य लोग भी शामिल हुए और वहां की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद लिया।
इगास बग्वाल: वीरता और परंपरा का प्रतीक पर्व
इगास बग्वाल न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह उत्तराखंड के वीर सैनिकों और उनके बलिदान की स्मृति को जीवंत करता है। इगास पर्व को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीराम का वनवास समाप्त हुआ और वे अयोध्या लौटे, तो गढ़वाल में इस खबर के पहुंचने में देरी हो गई। गढ़वाल के लोगों ने दीपावली 11 दिन बाद मनाई और यह परंपरा इगास के रूप में आज भी जीवित है।
एक अन्य कथा के अनुसार, वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल के सैनिकों ने तिब्बत युद्ध जीता और दीपावली के 11 दिन बाद अपने गांव लौटे। तब गांववालों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया और इसी से इगास पर्व की परंपरा का आरंभ हुआ। इस पर्व का केंद्रबिंदु “भैलो” (मशाल) है, जो चीड़ की लकड़ी से बनाई जाती है। भैलो जलाने की यह परंपरा पर्व के आकर्षण को बढ़ाती है। लोग मशाल घुमाते हुए गीतों और नृत्य का आनंद लेते हैं, जिससे यह पर्व अद्वितीय बनता है।
पारंपरिक पकवानों और भैलो की रोशनी से जगमगाया इगास पर्व
इगास पर्व के दौरान पारंपरिक पकवान जैसे फाणू, झंगोरा की खीर, दुबके, आलू की गुटके और सिंघल बनाए जाते हैं। इन पकवानों के साथ लोग अपने गांव-घर में इगास की रौनक और उत्साह को बनाए रखते हैं। इगास बग्वाल उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा का एक अनमोल हिस्सा है, जो हमें हमारे पूर्वजों की वीरता, संघर्ष और सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है।
प्रधानमंत्री मोदी और अन्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति से इस बार इगास पर्व का उल्लास और बढ़ गया। प्रधानमंत्री द्वारा इस पर्व को मनाए जाने के संदेश ने उत्तराखंड के लोगों को गर्वित किया और पूरे देश में इगास बग्वाल की पहचान को बल मिला।