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गढ़वाल राइफल्स ने मनाया नूरानांग सम्मान दिवस, वीरता और बलिदान की अमर गाथा का स्मरण

Garhwal Rifles celebrated Nuranang Samman Diwas, remembering the immortal saga of valor and sacrifice

देहरादून: चौथी गढ़वाल राइफल्स के पूर्व सैनिकों ने 17 नवंबर को नूरानांग सम्मान दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया। यह दिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान बटालियन की वीरता और शौर्य को स्मरण करने के लिए समर्पित है, जब उनके रणबांकुरों ने अपने अदम्य साहस और परंपरागत युद्ध कौशल से दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया था।

इस युद्ध में बटालियन के तीन अधिकारी, चार जेसीओ, 148 अन्य सैनिक और कई गैर-लड़ाकू सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। युद्ध के बाद, कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल बीएम भट्टाचार्य और राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। गढ़वाल राइफल्स को ‘बैटल ऑनर ऑफ नूरानांग’ की विशिष्ट मान्यता प्राप्त हुई।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में इन वीर शहीदों की स्मृति में जसवंतगढ़ मेमोरियल बनाया गया है। रिटायर्ड मेजर जनरल एमके यादव ने बताया कि युद्ध के अंतिम चरण में गोला-बारूद और जनशक्ति की कमी के बावजूद, बटालियन ने दुश्मन को पीछे धकेलने में सफलता पाई।

17 नवंबर 1962 को राइफलमैन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी, और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं ने चीनी मीडियम मशीन गन के बंकर पर साहसिक हमला किया। जसवंत सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना बंकर पर ग्रेनेड फेंककर मशीन गन पर कब्जा किया, लेकिन स्वचालित गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हुए।

गढ़वाल राइफल्स के इस युद्ध सम्मान की अनूठी विरासत को हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है। यह आयोजन देशभक्ति, बलिदान, और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को उजागर करता है।

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