
नई दिल्ली: भारत में आर्थिक प्रगति की नई इबारत लिखने में MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) और स्टार्टअप्स की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। रोजगार सृजन से लेकर नवाचार तक, ये छोटे-छोटे बिजनेस आइडिया आज देश के औद्योगिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन व्यवसायों को जरूरी समर्थन, संसाधन और सरल नीतियां उपलब्ध कराए, ताकि ये न सिर्फ आगे बढ़ें बल्कि देश की तरक्की में निर्णायक योगदान दे सकें।
MSME: रोजगार का बड़ा जरिया, लेकिन चुनौतियों से घिरा
भारत में 6 करोड़ से अधिक MSMEs हैं, जो लगभग 11 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देते हैं। यह सेक्टर देश के GDP में करीब 30% का योगदान देता है, फिर भी उन्हें बैंक लोन, मार्केट एक्सेस, टेक्नोलॉजी और सरकारी नियमों की जटिलता जैसी कई बाधाओं से जूझना पड़ता है। बिना पूंजी और उचित मार्गदर्शन के कई MSMEs शुरुआती वर्षों में ही दम तोड़ देते हैं।
सरल नीतियां और डिजिटल सपोर्ट से मिलेगा बढ़ावा
सरकार द्वारा ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’, ‘उद्यम रजिस्ट्रेशन’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सिस्टम को सरल बनाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर और भी सुधार की जरूरत है, जैसे जीएसटी प्रक्रिया को आसान बनाना, शीघ्र पेमेंट की गारंटी, और बाजार तक सीधा पहुंच उपलब्ध कराना। डिजिटल प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन सरकारी सेवाओं को MSME फ्रेंडली बनाना समय की मांग है।
स्टार्टअप्स: नवाचार की नई पहचान
भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है। युवा उद्यमी टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर, फिनटेक, एग्रीटेक जैसे क्षेत्रों में नए समाधान ला रहे हैं। स्टार्टअप्स को फंडिंग, मेंटरशिप और एक्सपोर्ट के अवसरों की जरूरत है, जो सरकार की सक्रिय भूमिका के बिना संभव नहीं।
आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम कदम
MSME और स्टार्टअप्स को समर्थन देना केवल आर्थिक विकास नहीं बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने की दिशा में भी अहम कदम है। सरकार अगर इन क्षेत्रों में निवेश, नीति और नियमन का संतुलन बनाए रखे, तो भारत जल्द ही वैश्विक व्यापार मानचित्र पर एक मजबूत ताकत बनकर उभरेगा।