
योग को समर्पित नीति का खाका तैयार
उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश को ‘योगभूमि’ बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया है। लंबे समय से तैयार की जा रही राज्य की पहली योग नीति अब अंतिम चरण में है। योग को संगठित और औपचारिक रूप देने के उद्देश्य से तैयार किए गए इस प्रस्ताव को विधायी विभाग से मंजूरी मिल चुकी है और जल्द ही इसे मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा।
ऋषिकेश से पूरे प्रदेश तक फैलेगा योग का विस्तार
ऋषिकेश को पहले ही “विश्व योग राजधानी” का दर्जा प्राप्त है, लेकिन अब सरकार का लक्ष्य पूरे उत्तराखंड को योग केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इसके लिए प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में योग आधारित विकास योजनाएं तैयार की गई हैं, जिससे राज्य में आध्यात्मिक पर्यटन, स्वास्थ्य और रोजगार को भी बल मिलेगा।
हर योग केंद्र का पंजीकरण होगा अनिवार्य
नई नीति के तहत प्रदेश के सभी योग केंद्रों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाएगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त योग पाठ्यक्रमों के लिए फीस प्रतिपूर्ति की योजना भी लागू की जाएगी। योग शिक्षण संस्थानों को एक समान प्रणाली में लाने और मानकीकरण के दिशा में यह एक ठोस प्रयास है।
योग में निवेश को मिलेगा बढ़ावा
सरकार की योजना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में योग से जुड़े संस्थानों की स्थापना के लिए निवेशकों को 40 से 50 फीसदी तक की सब्सिडी दी जाए। इससे न केवल योग सुविधाएं बढ़ेंगी, बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
नए योग केंद्रों की होगी स्थापना
राज्य के पांच प्रमुख क्षेत्रों—जागेश्वर, मुक्तेश्वर, दारमा-चौदास घाटी, व्यास, टिहरी झील और कोलीढेक झील—को योग और ध्यान केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। ये स्थल प्राकृतिक सौंदर्य, शांति और अध्यात्म के समन्वय से योग साधना के आदर्श केंद्र बनेंगे।
योग के माध्यम से आत्मनिर्भर उत्तराखंड का सपना
सरकार को विश्वास है कि यह नीति प्रदेश में न केवल योग को लोकप्रिय बनाएगी, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त करेगी। मुख्यमंत्री का मानना है कि उत्तराखंड योग के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी एक नई पहचान बनाने में सफल होगा।