
हल्द्वानी: भारत सरकार द्वारा ‘टीबी मुक्त भारत’ अभियान के अंतर्गत क्षय रोग के उन्मूलन के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। जागरूकता कार्यक्रमों, मुफ्त इलाज और सघन जांच अभियानों के बावजूद उत्तराखंड में टीबी के मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। यह स्थिति स्वास्थ्य विभाग के लिए एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है।
टीबी के आंकड़ों में तेजी
उत्तराखंड में वर्ष 2024 में कुल 29,432 टीबी मरीज दर्ज किए गए थे। वहीं, वर्ष 2025 में अभी तक सिर्फ जनवरी से 23 अप्रैल तक 11,732 मरीज सामने आ चुके हैं। नैनीताल जिले में भी टीबी के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 2023 में जहां 1,169 मरीजों की पहचान हुई थी, वहीं 2024 में यह संख्या 3,504 तक पहुंच गई। 2025 की शुरुआत से मई तक 1,292 नए मरीजों की पुष्टि हो चुकी है।
टीबी का इलाज संभव, लेकिन समय पर पहचान जरूरी
क्षय रोग (टीबी) एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसके लक्षणों में लगातार खांसी, खांसी में खून या बलगम, सीने में दर्द, बुखार, भूख न लगना और तेजी से वजन घटना शामिल है। समय पर इलाज और सही दवाओं से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है।
सरकारी योजनाओं और जांच का असर
मुख्य चिकित्सा अधिकारी नैनीताल डॉ. हरीश पंत ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे 100 दिवसीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है। मरीजों को मुफ्त दवाएं दी जा रही हैं और उनके परिवार को भी जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जन सहभागिता और जागरूकता ही टीबी को रोकने का एकमात्र रास्ता है।
रोकथाम के उपाय जरूरी
टीबी से बचाव के लिए संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, पोषण युक्त आहार लेना और नियमित दवा सेवन करना जरूरी है। इसके अलावा, संक्रमित व्यक्ति को खांसते समय मुंह ढकना चाहिए और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग की कोशिश है कि 2025 तक देश को टीबी से मुक्त किया जा सके, लेकिन इसमें समाज के हर व्यक्ति की भागीदारी अहम है। जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है, जिससे इस बीमारी को हराया जा सकता है।