
देहरादून, उत्तराखंड: राज्य की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के उद्देश्य से दिसंबर 2021 में देहरादून के नींबूवाला क्षेत्र में स्थापित हिमालय कल्चरल सेंटर, वर्तमान में अव्यवस्थाओं का शिकार हो चुका है। 6.7 करोड़ रुपये की लागत से बने इस सांस्कृतिक परिसर का मकसद हिमालयी संस्कृति, कला और विरासत को संरक्षण देना था, लेकिन अब यह भवन अपने वास्तविक उद्देश्य से भटकता दिख रहा है।
उद्घाटन के समय इस केंद्र में उत्तराखंड सहित पूरे हिमालय क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी 121 कलाकृतियों और मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया था। अब वही कलाकृतियां धूल और मौसम की मार झेल रही हैं। कई मूर्तियां टूट-फूट की स्थिति में हैं, और कुछ स्थानों पर तो दीवारों और छतों की हालत भी खराब हो चुकी है।
हर वर्ष मेंटेनेंस पर करोड़ों का खर्च, फिर भी स्थिति चिंताजनक
आरटीआई कार्यकर्ता अमर धुंता द्वारा सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी में यह खुलासा हुआ है कि सेंटर का निर्माण कार्य सरकारी कंपनी एनबीसीसी द्वारा किया गया था, और उसी को सालाना 2.5 करोड़ रुपये की राशि में मेंटेनेंस की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। इसके बावजूद केंद्र की वर्तमान स्थिति यह सवाल खड़ा करती है कि इतने भारी-भरकम खर्च के बावजूद रखरखाव में लापरवाही क्यों हो रही है।
राजस्व और खर्च में भारी अंतर
प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस परियोजना में केंद्र सरकार ने 4.5 करोड़ और राज्य सरकार ने 2.2 करोड़ रुपये का योगदान दिया था। वहीं, 2021 से 2025 के बीच सिर्फ 97 सांस्कृतिक कार्यक्रम ही आयोजित किए गए, जिससे मात्र 97 लाख रुपये का राजस्व अर्जित हुआ। इसके विपरीत, इसी अवधि में लगभग 10 करोड़ रुपये सिर्फ रखरखाव पर खर्च हो चुके हैं, जिससे संसाधनों के दुरुपयोग का मामला उजागर होता है।
मूल उद्देश्य से हो रहा विचलन
स्थानीय संस्कृति विशेषज्ञों और कलाकारों का कहना है कि यह सेंटर अब सांस्कृतिक गतिविधियों की बजाय विभागीय बैठकों और आंतरिक आयोजनों के लिए अधिक उपयोग में लाया जा रहा है। लोकगायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट ने कहा कि अगर संस्कृति संवर्धन के नाम पर संस्थान बनाए जाते हैं, तो वहां नियमित कार्यक्रम और धरोहरों की देखभाल सुनिश्चित होनी चाहिए।
विभाग का पक्ष
संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट ने बताया कि रखरखाव की जिम्मेदारी एनबीसीसी के पास है और कलाकृतियों की देखरेख जारी है। उन्होंने हालिया आयोजनों का हवाला देते हुए कहा कि थिएटर और सांस्कृतिक गतिविधियों को लेकर आमजन में रुचि बनी हुई है।
हिमालय कल्चरल सेंटर की वर्तमान स्थिति उत्तराखंड की सांस्कृतिक भावना और संसाधनों के सही उपयोग पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। जरूरी है कि इस धरोहर की सार्थकता बनाए रखने के लिए संवेदनशीलता के साथ ठोस कदम उठाए जाएं।