
कोटद्वार: उत्तराखंड के कोटद्वार स्थित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (पीजी कॉलेज) एक बार फिर प्रशासनिक अनियमितताओं को लेकर विवादों में है। इस बार मामला छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं में हुई त्रुटियों से संबंधित है, जिसे लेकर छात्र-छात्राओं ने समय रहते शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन कॉलेज प्रशासन की गंभीर लापरवाही और उदासीन रवैये के चलते न सिर्फ समय पर समाधान नहीं हो पाया, बल्कि पूरी प्रक्रिया को असंगठित और गैर-पेशेवर तरीके से अंजाम दिया गया।
छात्रों ने समय रहते दी थी शिकायत
15 मई को कुछ छात्र-छात्राओं ने उत्तराखंड की श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय द्वारा मूल्यांकन में हुई गड़बड़ियों को लेकर एक लिखित शिकायत पत्र कॉलेज प्रशासन को सौंपा था। उनका उद्देश्य था कि कॉलेज इस शिकायत को विश्वविद्यालय तक औपचारिक रूप से मेल के माध्यम से भेजे, ताकि जल्द सुधार की प्रक्रिया शुरू हो सके।
कोई जवाब नहीं, अधिकारी का असंवेदनशील रवैया
कई दिनों तक कॉलेज से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर जब छात्रों ने विश्वविद्यालय स्तर पर संबंधित अधिकारी से संपर्क किया, तो न केवल यह सामने आया कि कॉलेज प्रशासन ने अब तक कोई मेल नहीं भेजा, बल्कि संबंधित अधिकारी ने शिकायत की गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए गैर-जिम्मेदाराना और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया।
प्रशासनिक कार्य अब व्हाट्सएप पर?
इस मामले में और भी चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ जब कॉलेज के एक कर्मचारी से पूछने पर उन्होंने कहा, “हमने शिकायत पत्र को प्राचार्य जी को व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड कर दिया था।” इससे सवाल उठता है कि क्या अब सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रशासनिक कामकाज औपचारिक प्रक्रिया की जगह व्हाट्सएप जैसे निजी प्लेटफॉर्मों पर किए जा रहे हैं?
क्या अब छात्रों के भविष्य से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय “seen” और “delivered” स्टेटस पर निर्भर रह गए हैं?
प्राचार्य ने दिए सख्त निर्देश
जब छात्र प्राचार्य डॉ. डीएस नेगी से मिले, तो उन्होंने संबंधित कर्मचारी को स्पष्ट निर्देश दिए कि इस प्रकार की सभी शिकायतें विश्वविद्यालय को मेल द्वारा भेजना अनिवार्य है। उन्होंने यह भी माना कि छात्रों की समस्याओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
विश्वविद्यालय पर भी उठे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में केवल कॉलेज ही नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय भी सवालों के घेरे में है। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में उत्तर पुस्तिकाओं और अंक तालिकाओं में लगातार त्रुटियां सामने आ रही हैं। छात्रों को मामूली सुधार के लिए बार-बार टिहरी स्थित विश्वविद्यालय कार्यालय जाना पड़ता है, जिससे न केवल मानसिक तनाव बढ़ता है, बल्कि आर्थिक और शैक्षणिक नुकसान भी होता है।
जवाबदेही किसकी?
अब बड़ा सवाल यही है कि यदि इस लापरवाही के कारण किसी छात्र की डिग्री या भविष्य प्रभावित होता है, तो इसकी जिम्मेदारी किस पर तय होगी? कॉलेज प्रशासन, विश्वविद्यालय या फिर केवल एक कर्मचारी? यह स्थिति दर्शाती है कि जब तक व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीकी दक्षता नहीं लाई जाती, तब तक छात्रों को इस तरह की समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ेगा।
राजकीय महाविद्यालय जैसे संस्थानों में छात्रों के भविष्य से जुड़ी प्रक्रियाओं में इस प्रकार की गंभीर लापरवाहियां निंदनीय हैं। यह ज़रूरी है कि हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित की जाए और औपचारिक प्रक्रियाओं को सख्ती से लागू किया जाए, ताकि छात्रों का शैक्षणिक भविष्य सुरक्षित रह सके।