देहरादून: उत्तराखंड अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, जहां सैकड़ों प्राचीन मंदिर मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है मां डाट काली का मंदिर, जो देहरादून से करीब 15 किलोमीटर दूर उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता के लिए, बल्कि यहां की धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के लिए भी जाना जाता है। यहां रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जबकि नवरात्रों के समय भक्तों की संख्या हजारों तक पहुंच जाती है।
मां डाट काली मंदिर का इतिहास:
मंदिर का निर्माण अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान, साल 1804 में हुआ था। इस मंदिर में जलाई गई अखंड ज्योति और हवन कुंड पिछले 200 वर्षों से बिना रुके जल रहे हैं। मान्यता है कि जब यहां सुरंग का निर्माण कार्य चल रहा था, तब मजदूरों द्वारा दिन में की गई खुदाई रात को फिर भर जाती थी। तब एक महंत के पूर्वजों को स्वप्न में देवी का आदेश मिला, जिसके बाद यहां मां डाट काली की प्रतिमा स्थापित की गई, और तभी से यह स्थान सिद्धपीठ के रूप में पूजनीय हो गया।
परंपराएं और मान्यताएं:
मां डाट काली मंदिर की एक विशेष परंपरा यह है कि यहां पर नया काम शुरू करने या नया वाहन खरीदने के बाद पूजा की जाती है। श्रद्धालु मानते हैं कि ऐसा करने से उनकी यात्रा या कार्य सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। इसके साथ ही नवविवाहित जोड़े भी यहां आकर मां का आशीर्वाद लेते हैं, ताकि उनका जीवन सुख-समृद्धि से भरा रहे।
सुरंग निर्माण और मंदिर का नाम:
मां डाट काली मंदिर का प्राचीन नाम “मां घाटे वाली देवी” था, लेकिन जब सुरंग का निर्माण हुआ, तब इसे “डाट काली मंदिर” के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि मां की स्थापना के बाद ही सुरंग निर्माण का कार्य बिना किसी रुकावट के पूरा हुआ। इस सुरंग को 1936 तक कच्चा रखा गया था, लेकिन उसके बाद इसे पक्का किया गया।
विशेष अवसर और श्रद्धालुओं की भीड़:
मंगलवार, शनिवार और रविवार को मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है। नवरात्रों के दौरान यह संख्या हजारों में पहुंच जाती है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं, क्योंकि मान्यता है कि मां डाट काली सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व इसे उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक बनाता है।