
चमोली, उत्तराखंड: पंच केदारों में चौथे स्थान पर स्थित भगवान रुद्रनाथ के कपाट आज ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत पूजा-अर्चना के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। सुबह करीब 4 बजे कपाट खुलने के साथ ही मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भर गया और चारों ओर “बम-बम भोले” के जयकारे गूंजने लगे। देश-प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए भक्त इस पावन अवसर पर भगवान के दर्शन करने पहुंचे, जो उनके लिए आध्यात्मिक अनुभव का अनमोल पल था।
गोपीनाथ मंदिर से शुरू हुई पवित्र डोली यात्रा
रुद्रनाथ यात्रा की शुरुआत 16 मई को गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर से हुई, जहां भगवान रुद्रनाथ की चल विग्रह डोली को पूजा-अर्चना के बाद भक्तों के जय-जयकार के साथ धाम की ओर रवाना किया गया। डोली यात्रा की यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और यह शिवभक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है। डोली पनार बुग्याल के रास्ते से होते हुए रुद्रनाथ मंदिर पहुंची, जहां भक्तों ने हर्षोल्लास से स्वागत किया।
रुद्रनाथ मंदिर की अनोखी पूजा पद्धति
पंचकेदारों में विशेष महत्व रखने वाले रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के ‘एकनान’ यानी एक मुख स्वरूप की पूजा की जाती है। यह पूजा अन्य केदारों से भिन्न है जहां शिव के विभिन्न अंगों की पूजा होती है। कपाट खुलने के बाद मई से अक्टूबर तक श्रद्धालु मंदिर में भगवान के दर्शन कर सकते हैं। शीतकालीन महीनों में बर्फबारी के कारण मंदिर बंद रहता है और पूजा गोपीनाथ मंदिर में आयोजित होती है।
प्रशासन ने पूरी की सुरक्षा व्यवस्था
चमोली जिला प्रशासन और पुलिस विभाग ने इस वर्ष भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए कड़े इंतजाम किए हैं। ट्रेकिंग मार्गों पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के साथ-साथ सफाई और पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। पुलिस ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे यात्रा के दौरान प्लास्टिक का उपयोग न करें और पर्यावरण को स्वच्छ रखें।
धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व
रुद्रनाथ धाम हिमालय की गोद में स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए लगभग 20 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होती है। मार्ग में बुग्याल, झरने और हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं श्रद्धालुओं को एक अद्भुत प्राकृतिक अनुभव प्रदान करती हैं। कपाट खुलने के बाद अब रुद्रनाथ धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने की उम्मीद है, जो धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण है।
इस वर्ष की रुद्रनाथ यात्रा पिछले वर्षों की तुलना में अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करने की संभावना जताई जा रही है, जो इस पर्व के महत्व और आस्था की गहराई को दर्शाता है।