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धनोल्टी की वादियों में काफल की महक: स्थानीय फल बना शहरी लोगों की पहली पसंद

The fragrance of Kafal in the valleys of Dhanolti: Local fruit has become the first choice of urban people

काफल की बढ़ती लोकप्रियता
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला काफल इन दिनों चर्चा में है। धनोल्टी क्षेत्र सहित टिहरी जनपद के अग्यारना, तेवा, लगडांसू और बंगसील जैसे गांवों में इसकी अच्छी पैदावार हो रही है। गर्मी के मौसम में पहाड़ों का यह खट्टा-मीठा फल अब शहरी बाजारों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए स्थानीय लोग इसे एक नई कृषि संभावना के रूप में देखने लगे हैं।

स्वाद और सेहत का अनूठा मेल
काफल न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है बल्कि इसके औषधीय गुण भी इसे खास बनाते हैं। यह फल पेट की कब्ज से राहत दिलाने में कारगर माना जाता है। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि गर्मियों में इसका सेवन शरीर को ठंडक देता है और पाचन को बेहतर बनाता है। गांवों में काफल वर्षों से पारंपरिक रूप से खाया जाता रहा है, लेकिन अब यह फल शहरी लोगों की थाली तक भी पहुंच रहा है।

स्थानीय बाजारों में अच्छी मांग
थत्यूड़ बाजार में जूस की दुकान चलाने वाले विशाल रौछेला का कहना है कि इन दिनों काफल की मांग काफी बढ़ गई है। पर्यटक और शहरी लोग इसके स्वाद को लेकर काफी उत्साहित नजर आते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार इस फल को संगठित बाजार मुहैया कराए, तो स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से बड़ा लाभ मिल सकता है।

संस्कृति और परंपरा से जुड़ा फल
काफल केवल एक फल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। प्रसिद्ध पहाड़ी गीत “बेडू पाको बारामासा, हो नरैण काफल पाको चैता मेरी छैला” में भी इसका उल्लेख किया गया है। यही कारण है कि इसे उत्तराखंड का राजकीय फल घोषित किया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम Myrica esculenta है और यह भारत के अलावा नेपाल और हिमाचल में भी पाया जाता है।

सरकारी सहयोग से मिल सकता है नया आयाम
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता खेमराज भट्ट का मानना है कि अगर काफल की ब्रांडिंग और विपणन के लिए सरकार ठोस कदम उठाए, तो यह फल पहाड़ों की आर्थिकी को मजबूती दे सकता है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा बल्कि स्थानीय उत्पादों को भी वैश्विक पहचान दिला सकता है।

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