
विकासनगर (देहरादून): पछवादून क्षेत्र के खेतों में इस समय बासमती धान की लहलहाती फसल अपनी खुशबू बिखेर रही है, जो स्थानीय किसानों और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहद लोकप्रिय है। देहरादून की प्रसिद्ध बासमती चावल, जो अपनी अनोखी खुशबू और पौष्टिक गुणों के लिए जानी जाती है, की मांग हमेशा बनी रहती है। हालांकि, बीते कुछ दशकों में बासमती की खेती में गिरावट देखी गई थी, लेकिन अब पारंपरिक खेती करने वाले किसान फिर से इसकी ओर लौट रहे हैं और बासमती धान का रकबा बढ़ा रहे हैं।
प्राकृतिक खेती की ओर लौटते किसान
स्थानीय किसानों का कहना है कि वे अब नई प्रजातियों की बजाय देहरादून बासमती धान की खेती में रुचि ले रहे हैं। इसका कारण यह है कि इस धान की फसल में रोग कम लगते हैं और उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता भी नहीं होती। किसान केवल गोबर की खाद का उपयोग करते हैं, जिससे फसल प्राकृतिक रूप से तैयार होती है। बासमती चावल की गुणवत्ता और इसकी खुशबू के कारण बाजार में इसकी कीमत अन्य चावलों की तुलना में 20-25 रुपए प्रति किलो ज्यादा मिलती है।
बासमती की अंतरराष्ट्रीय पहचान
कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक संजय सिंह राठी ने बताया कि देहरादून बासमती, जो उत्तराखंड की सबसे पुरानी बासमती किस्म है, अपनी गुणवत्ता और खुशबू के कारण यूरोप और ब्रिटेन तक लोकप्रिय है। हालांकि, इसका उत्पादन नई प्रजातियों की तुलना में कम होता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता इसे विशेष बनाती है, जिससे यह हाथों-हाथ बिक जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि उत्तराखंड की तलहटी से लेकर जम्मू-कश्मीर और नेपाल के बॉर्डर तक की शिवालिक पर्वत श्रृंखला बासमती धान की खेती के लिए बेहद अनुकूल है।
पछवादून में बासमती की खेती का विस्तार
पछवादून के सोरना डोबरी, विकासनगर, बरोटीवाला, प्रतीतपुर, धर्मावाला और नयागांव जैसे क्षेत्रों में लगभग 200 हेक्टेयर भूमि पर देहरादून बासमती धान की खेती की जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, एक हेक्टेयर भूमि पर औसतन 10 से 12 क्विंटल धान की पैदावार होती है। इस धान की खेती में रोग और कीटों की समस्या कम होती है, जिससे रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न के बराबर होता है। किसानों को लोकल मिल्स, जैसे यूनाइटेड राइस मिल और इंडिया गेट बासमती मिल, से बीज उपलब्ध कराए जाते हैं, जो चावल की प्रोसेसिंग करके बाजार में बेचते हैं।
देहरादून बासमती की बढ़ती मांग और किसानों के बीच इसके प्रति फिर से बढ़ते रुझान ने इस फसल की खेती को पुनर्जीवित कर दिया है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है।