
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड: पौड़ी जिले के पोखड़ा क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक नई और प्रेरणादायक पहल सामने आई है। यहां महिला क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया गया है, जिसमें 11 महिला टीमें भाग ले रही हैं। टूर्नामेंट में शामिल सभी खिलाड़ी स्थानीय ग्रामीण क्षेत्रों की बालिकाएं हैं, जो खेल के जरिए अपने आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को निखार रही हैं।
इस आयोजन को सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि इसे बालिकाओं के सामाजिक और मानसिक विकास की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। इसका उद्देश्य गांव की बेटियों को आगे बढ़ने का एक सशक्त मंच प्रदान करना है।
खेल के ज़रिए मिला नया आत्मविश्वास
टूर्नामेंट में भाग ले रही बालिकाओं ने इसे अपने जीवन में एक नया अवसर बताया है। सिमरन, जो कई बार छोटी प्रतियोगिताओं में हारी थीं, अब इस आयोजन में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं। उन्होंने कहा, “हमें पहली बार लगा कि हम भी कुछ बड़ा कर सकते हैं।”
वहीं, श्रद्धा, जो पहली बार किसी बड़े स्तर की प्रतियोगिता में खेल रही हैं, ने कहा, “पहले सिर्फ लड़कों के लिए आयोजन होते थे, लेकिन अब हम लड़कियों को भी मैदान में उतरने का अवसर मिल रहा है।”
महिला खिलाड़ियों के लिए समान अवसर
पूर्व ब्लॉक प्रमुख सुरेंद्र सिंह रावत ने बताया कि वर्ष 2024 से पहले इस क्षेत्र में केवल पुरुष क्रिकेट प्रतियोगिताएं होती थीं। लेकिन अब से महिलाओं को भी बराबरी का मंच मिलने लगा है। उन्होंने कहा, “यह पहल न केवल खेल को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज में महिला नेतृत्व को भी प्रोत्साहित करती है।”
बालिकाएं राज्य स्तर पर कर रहीं प्रतिनिधित्व
इस आयोजन की सफलता का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि पहले सीज़न में हिस्सा लेने वाली पैठाणी की दो बालिकाएं अब उत्तराखंड महिला क्रिकेट टीम में जगह बना चुकी हैं।
आयोजक देवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि अब तक इस टूर्नामेंट ने दर्जनों बालिकाओं को खेल की दिशा में प्रेरित किया है और आने वाले समय में इसका विस्तार जिला एवं राज्य स्तर तक किया जाएगा।
ग्रामीण परिवेश से राष्ट्रीय मंच की ओर
सामाजिक कार्यकर्ता कविता भंडारी के अनुसार, “जब लड़कियों को सही माहौल और सुविधाएं मिलती हैं, तो वे किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहतीं। यह आयोजन उसी सोच की बुनियाद है।”
इस टूर्नामेंट से खेल भावना, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व जैसी क्षमताएं बालिकाओं में विकसित हो रही हैं। पोखड़ा का यह आयोजन अब एक रोल मॉडल के रूप में उभर रहा है, जो दिखा रहा है कि छोटे गांवों की बेटियां भी बड़े सपने देख सकती हैं और उन्हें पूरा करने का हौसला रखती हैं।