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देहरादून: उत्तराखंड में बाघ संरक्षण पर सवाल, 12 साल में 132 बाघों की मौत

Dehradun: Questions raised on tiger conservation in Uttarakhand, 132 tigers died in 12 years

औसतन हर साल 11 बाघों की जान
उत्तराखंड में पिछले 12 वर्षों के दौरान हर साल औसतन 11 बाघों की मौत दर्ज की गई है, जबकि टाइगर कंजर्वेशन के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। 2024 में, हालांकि बाघों की मौत का आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में कम हुआ, फिर भी 8 बाघों की मौत चिंताजनक है।

नेशनल टाइगर कंजर्वेशन रिपोर्ट: 50% मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र में
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 12 वर्षों में देश भर में 1386 बाघों की मौत हुई। इनमें से 50% मौतें टाइगर रिजर्व क्षेत्र के भीतर, 42% टाइगर रिजर्व क्षेत्र के बाहर, और 8% मौतों का कारण स्पष्ट नहीं हो सका।

उत्तराखंड में बाघों की मौत का केंद्र: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व
राज्य में अधिकांश मौतें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और इसके आसपास के क्षेत्रों में दर्ज की गईं। 2024 में मारे गए 8 बाघों में से 3 कॉर्बेट रिजर्व क्षेत्र में, 2 राजाजी टाइगर रिजर्व में, और शेष 3 कुमाऊं के बाहरी इलाकों में मरे।

राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की मौत का आंकड़ा
2024 में देश भर में कुल 125 बाघों की मौत हुई। 2023 में यह संख्या 182 थी। पिछले वर्षों में 2022 में 122, 2021 में 127, और 2020 में 106 बाघों की मौत दर्ज की गई थी।

मध्य प्रदेश बना बाघों की मौत का शीर्ष राज्य
पिछले 12 वर्षों में देश में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मध्य प्रदेश (355) में हुई। महाराष्ट्र (261) और कर्नाटक (179) क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। उत्तराखंड 132 मौतों के साथ चौथे स्थान पर है।

देश में बाघों की कुल संख्या
भारत में कुल 3682 बाघ मौजूद हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 785 मध्य प्रदेश में हैं। कर्नाटक 563 बाघों के साथ दूसरे और उत्तराखंड 560 बाघों के साथ तीसरे स्थान पर है। उत्तराखंड के 260 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं।

उत्तराखंड में केयरिंग कैपेसिटी पर अध्ययन
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि बाघों की बढ़ती संख्या संरक्षण प्रयासों की सफलता का संकेत है। अब केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन कराया जा रहा है, ताकि मानव और वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सके।

बाघों की मौत: कारणों पर सवाल
2024 में उत्तराखंड में मरे 8 बाघों में 90% मौतों की जांच जारी है। इनमें से 13 मौतें प्राकृतिक मानी गईं, जबकि एक बाघ का शिकार हुआ। 2023 में 96 मौतें जांच के दायरे में थीं, और 12 बाघ शिकारियों का शिकार बने।

राष्ट्रीय स्तर पर जांच का निष्कर्ष
पिछले 12 वर्षों में टाइगर्स की मौत के 71% मामलों में जांच पूरी कर रिपोर्ट बंद कर दी गई, जबकि 29% मामलों की जांच अभी भी जारी है। इनमें से अधिकांश घटनाएं पिछले 5 वर्षों की हैं।

संरक्षण के लिए प्रयास तेज करने की जरूरत
बाघ संरक्षण के लिए करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद बाघों की मौतों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। उत्तराखंड और राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की सुरक्षा के लिए और सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

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