
इमोशन इन कलर: ए कालीडोस्कोप ऑफ इंडिया प्रोग्राम का हिस्सा बनी भंसाली की क्लासिक फिल्म
मुंबई: संजय लीला भंसाली की 2002 की क्लासिक फिल्म ‘देवदास’ को एक और बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। इस फिल्म को लॉस एंजेलेस के ‘एकेडमी म्यूज़ियम ऑफ मोशन पिक्चर्स’ में 8 मार्च से 20 अप्रैल तक आयोजित ‘इमोशन इन कलर: ए कालीडोस्कोप ऑफ इंडिया’ प्रोग्राम के तहत स्क्रीन किया जाएगा।
20 साल बाद भी कायम है ‘देवदास’ का जादू
शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित की शानदार अदाकारी, भव्य सेट और भंसाली की सिनेमाई शैली ने ‘देवदास’ को भारतीय सिनेमा का एक यादगार रत्न बना दिया। इस फिल्म को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा की भव्यता और सांस्कृतिक छटा दिखाने के लिए चुना गया है।
‘इमोशन इन कलर’ प्रोग्राम में भारत की 12 फिल्मों की स्क्रीनिंग
‘इमोशन इन कलर’ प्रोग्राम भारतीय फिल्मों में रंगों और उनकी सांस्कृतिक गहराई को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जा रहा है। इसमें भारतीय सिनेमा की 12 ऐतिहासिक फिल्मों को शामिल किया गया है। इनमें ‘मदर इंडिया’, ‘मंथन’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘मिर्च मसाला’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और ‘जोधा अकबर’ जैसी फिल्में शामिल हैं।
भंसाली की सिनेमाई कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान
संजय लीला भंसाली ने हमेशा भव्य और दिल को छू लेने वाली फिल्मों का निर्माण किया है। ‘देवदास’ उनकी सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक है, जो अधूरी मोहब्बत, शाही ठाठ-बाट और गहरे इमोशंस को दर्शाती है। लॉस एंजेलेस में इसकी स्क्रीनिंग यह साबित करती है कि यह फिल्म केवल भारतीय सिनेमा तक सीमित नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुकी है।
इन 12 भारतीय फिल्मों की होगी स्क्रीनिंग
- 7 मार्च: मदर इंडिया (1957) – मेहबूब खान
- 10 मार्च: मंथन (1976) – श्याम बेनेगल
- 10 मार्च: अमर अकबर एंथनी (1977) – मनमोहन देसाई
- 11 मार्च: इशानौ (1990) – अरिबम स्याम शर्मा
- 14 मार्च: कुम्मट्टी (1979) – अरविंदन गोविंदन
- 18 मार्च: मिर्च मसाला (1987) – केतन मेहता
- 22 मार्च: देवदास (2002) – संजय लीला भंसाली
- 20 मार्च: दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – आदित्य चोपड़ा
- 31 मार्च: जोधा अकबर (2008) – आशुतोष गोवारिकर
- 5 अप्रैल: कंचनजंघा (1962) – सत्यजीत रे
- 8 अप्रैल: माया दर्पण (1972) – कुमार शाहनी
- 19 अप्रैल: इरुवर (1997) – मणिरत्नम
‘देवदास’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म का इस प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शन भारतीय सिनेमा के लिए गर्व की बात है। यह न केवल भंसाली की कला को सम्मानित करता है, बल्कि भारतीय फिल्मों की वैश्विक पहुंच को भी मजबूत करता है।