
नई दिल्ली: दिल्ली के रंगपुरी इलाके से एक बेहद दुखद और हृदय विदारक घटना सामने आई है, जहां एक 46 वर्षीय पिता ने अपनी चार दिव्यांग बेटियों के साथ सामूहिक आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार, पांचों ने जहरीला पदार्थ खाकर अपनी जान दे दी। मृतक परिवार की मां पहले ही कैंसर से जिंदगी की जंग हार चुकी थी। घटना की जानकारी शुक्रवार देर रात तब मिली, जब पड़ोसियों ने फ्लैट से आ रही बदबू के कारण पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने फ्लैट का दरवाजा तोड़कर पांचों शवों को बरामद किया।
पिता की पहचान और पारिवारिक स्थिति
मृतक पिता का नाम हीरालाल शर्मा था, जो मूल रूप से बिहार के छपरा जिले का निवासी था और पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रहा था। वे वसंत कुंज स्थित एक निजी अस्पताल में बढ़ई (कारपेंटर) के तौर पर काम करते थे, लेकिन जनवरी 2024 से अपनी ड्यूटी पर नहीं जा रहे थे। हीरालाल की चार बेटियां थीं, जिनमें से दो पूरी तरह से चलने-फिरने में असमर्थ थीं, जबकि बाकी दो आंशिक रूप से दिव्यांग थीं। उनकी उम्र क्रमशः 26, 24, 23 और 20 साल थी।
बेटियों का कष्ट देख नहीं सका पिता
बताया जा रहा है कि हीरालाल अपनी बेटियों की देखभाल को लेकर अत्यधिक परेशान था। बेटियों की हालत और उनके दिव्यांग होने की वजह से वे अक्सर अस्पतालों के चक्कर काटते रहते थे। उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी और इस वजह से हीरालाल मानसिक दबाव में थे। बेटियों के इलाज के साथ-साथ उन्हें आर्थिक संकट से भी जूझना पड़ रहा था, और शायद यही कारण था कि उन्होंने इस कठोर कदम को उठाया।
फ्लैट से उठी बदबू ने खोला राज़
शुक्रवार को जब फ्लैट से तेज दुर्गंध उठी, तब पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस जब मौके पर पहुंची तो घर के अंदर से पांचों शव बरामद किए गए। हीरालाल का शव एक कमरे के बिस्तर पर मिला, जबकि चारों बेटियों के शव दूसरे कमरे में पड़े हुए थे। पुलिस ने घर के अंदर से जहर के तीन पैकेट और संदिग्ध तरल पदार्थ से भरे गिलास बरामद किए हैं। प्रारंभिक जांच में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आत्महत्या की यह घटना दो से तीन दिन पहले हुई थी।
कोई सुसाइड नोट नहीं मिला
घटनास्थल से किसी प्रकार का सुसाइड नोट नहीं मिला है, लेकिन पुलिस का मानना है कि हीरालाल ने बेटियों के दिव्यांग होने और परिवार की आर्थिक तंगी के चलते यह घातक कदम उठाया। स्थानीय पुलिस के साथ-साथ फॉरेंसिक टीम ने जांच शुरू कर दी है, और सभी शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
पिता की दिनचर्या और संघर्ष
पुलिस सूत्रों के अनुसार, हीरालाल सुबह काम पर जाने से पहले अपनी बेटियों को खाना खिलाते थे और वापस लौटने पर फिर से उनकी देखभाल में लग जाते थे। बच्चियां ज्यादातर समय बिस्तर पर ही पड़ी रहती थीं और चलने-फिरने में पूरी तरह असमर्थ थीं। पिछले कुछ महीनों से हीरालाल नौकरी पर भी नहीं जा रहे थे और पूरी तरह से बेटियों की देखभाल में लगे थे।
आर्थिक संकट ने और बढ़ाई मुश्किलें
परिवार एक किराए के मकान में रहता था और हीरालाल की आमदनी से ही घर का खर्च चलता था। उन्हें आखिरी बार 24 सितंबर को देखा गया था, जिसके बाद से किसी ने भी उन्हें नहीं देखा। तीन दिन बाद जब बदबू फैलने लगी, तब यह दुखद घटना सामने आई। पुलिस हर एंगल से मामले की जांच कर रही है, लेकिन फिलहाल, बेटियों का दिव्यांग होना और आर्थिक तंगी को आत्महत्या का मुख्य कारण माना जा रहा है।
यह घटना एक बार फिर समाज में मानसिक स्वास्थ्य और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे लोगों के प्रति जागरूकता की जरूरत को सामने लाती है।