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जनगणना में हो रही देरी से गरीबों की थाली पर संकट, करोड़ों लोग सस्ते राशन से वंचित

Delay in census is creating problems for the poor, crores of people are deprived of cheap ration

नई दिल्ली: भारत में जनगणना की प्रक्रिया चार साल से अधूरी पड़ी है, और अब इसके लिए निर्धारित बजट में कटौती से इसके और लंबित होने के संकेत मिल रहे हैं। इस देरी का सीधा असर देश की करोड़ों गरीब जनता पर पड़ रहा है, जिन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत सस्ता अनाज मिलना चाहिए, लेकिन जनसंख्या आंकड़ों के अभाव में वे इससे वंचित रह गए हैं।

NFSA के तहत 8.1 मिलियन लोग रह गए बाहर

सरकार ने NFSA के तहत वर्तमान में 80.6 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाला अनाज उपलब्ध कराने की योजना चलाई हुई है, जबकि खुद सरकार का अनुमान है कि इस योजना के तहत 81 लाख और लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। NFSA के प्रावधान के अनुसार, 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को इसमें शामिल किया जाना चाहिए, परंतु जनगणना के अद्यतन न होने से यह कवरेज अधूरी रह गई है।

सरकार का जवाब: जनगणना के बाद ही बढ़ेगी योजना की पहुंच

संसद में सरकार ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि NFSA के लाभार्थियों की संख्या को तब तक संशोधित नहीं किया जा सकता, जब तक कि नई जनगणना के आंकड़े सामने नहीं आ जाते। इसका मतलब है कि जब तक जनगणना नहीं होती, तब तक लाखों गरीब परिवार सस्ते राशन से वंचित ही रहेंगे।

PDS ने लाखों बच्चों को कुपोषण से बचाया

एक रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) ने लगभग 18 लाख बच्चों को स्टंटिंग यानी कुपोषण से बचाने में मदद की है। इससे स्पष्ट होता है कि अगर NFSA की कवरेज पूरी होती, तो और भी अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सकता था।

जातिगत जनगणना की घोषणा, लेकिन तिथि अब भी अज्ञात

30 अप्रैल को सरकार ने घोषणा की कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे, लेकिन यह नहीं बताया गया कि जनगणना कब कराई जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह जनगणना अब 2026 में ही संभव है, यानी पांच साल की देरी।

ऐतिहासिक परंपरा टूटी, भारत बना अपवाद

भारत में पहली बार 1881 में एक साथ पूरे देश में जनगणना हुई थी और यह परंपरा हर 10 साल में चली आ रही थी। लेकिन अब भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जहां महामारी के बाद जनगणना नहीं हो पाई है।

जनगणना की देरी केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया की देरी नहीं है, यह लाखों लोगों के जीवन और भोजन की गुणवत्ता से जुड़ा मुद्दा है। यदि जल्द जनगणना नहीं करवाई गई, तो खाद्य सुरक्षा, पोषण और सामाजिक कल्याण से जुड़ी नीतियों की प्रभावशीलता गहरी क्षति झेल सकती है।

 

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