श्रीनगर, उत्तराखंड – उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ पारंपरिक व्यंजनों के लिए भी मशहूर हो रहा है। इस विरासत को और अधिक लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने चौरास परिसर में एक अनोखे फूड फेस्टिवल का आयोजन किया। इस फेस्टिवल में उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद देश के विभिन्न हिस्सों से आए छात्रों और प्रोफेसरों ने चखा।
पारंपरिक व्यंजनों का जलवा
इस आयोजन में झंगोरे की खीर, अरसे, मंडुवे की रोटी, रोटाना, छोलिया रोटी, टमाटर की चटनी, चौलाई का हलवा और भंगजीरे की चटनी जैसे पारंपरिक व्यंजन प्रमुख आकर्षण रहे। फेस्टिवल के जरिए स्थानीय खानपान को न सिर्फ बढ़ावा दिया गया बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता को भी प्रदर्शित किया गया।
इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुभाष चंद्रा ने बताया कि छात्रों द्वारा लगाए गए स्टाल्स पर व्यंजन न केवल उत्तराखंड के थे, बल्कि अन्य राज्यों के पारंपरिक व्यंजनों को भी शामिल किया गया। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के व्यंजन मुख्यतः मिलेट्स (कुट्टू, मंडुवा, झंगोरा) से बनाए जाते हैं, जो पोषण से भरपूर होते हैं।
पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मिलेगा बढ़ावा
डॉ. चंद्रा ने कहा कि उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यदि यहां के पारंपरिक व्यंजनों को भी पर्यटन का हिस्सा बनाया जाए, तो इससे स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। उन्होंने इस तरह के आयोजनों को राज्य की संस्कृति और पर्यटन के समन्वय का जरिया बताया।
छात्राओं का उत्साह
फेस्टिवल में भाग लेने वाली इतिहास विभाग की छात्रा मीनाक्षी राणा ने बताया कि उन्होंने झंगोरे का पाल्यौ, छोलिया रोटी, टमाटर की चटनी और चौलाई का हलवा बनाया। यह व्यंजन उत्तराखंड की विशिष्ट खानपान परंपरा को दर्शाते हैं। वहीं, छात्रा वसीता थपलियाल ने बताया कि उन्होंने सवाले, भंगजीरे की चटनी और पहाड़ी लाल चावल की खीर तैयार की। वसीता ने इस फेस्टिवल को उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों को नई पहचान देने का एक प्रयास बताया।
छात्रों और प्रोफेसरों ने की सराहना
फूड फेस्टिवल में आए छात्रों और प्रोफेसरों ने पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हुए इस प्रयास की सराहना की। छात्रों ने कहा कि इस तरह के आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों को उत्तराखंड की संस्कृति और खानपान से जोड़ने का अनूठा माध्यम हैं।
निष्कर्ष
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का यह फूड फेस्टिवल न केवल पारंपरिक व्यंजनों को बढ़ावा देने में सफल रहा, बल्कि सांस्कृतिक विविधता को भी एक मंच प्रदान किया। भविष्य में इस तरह के आयोजन उत्तराखंड के पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।