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मोदी के आलोचक से सहयोगी तक: नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का NDA में वापसी का राजनीतिक सफर

From critic to ally of Modi: Political journey of Nitish Kumar and Chandrababu Naidu to return to NDA

नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में बदलाव का सबसे दिलचस्प अध्याय 2024 लोकसभा चुनाव के बाद तब सामने आया, जब कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर आलोचक रहे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा बन गए। यह वापसी न केवल सत्ता संतुलन को प्रभावित कर रही है, बल्कि आने वाले वर्षों की राजनीति की दिशा भी तय कर सकती है।

नीतीश कुमार की पलटी ने बदले सियासी समीकरण
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके राजनीतिक “यू-टर्न” के लिए जाना जाता है। उन्होंने INDIA गठबंधन से नाता तोड़कर एक बार फिर बीजेपी का साथ चुना। 2024 लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा, और अब नीतीश की भूमिका केंद्र सरकार में अहम मानी जा रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें उप-प्रधानमंत्री (डिप्टी पीएम) जैसे पद की पेशकश हो सकती है, जिससे एनडीए को स्थायित्व और मजबूती मिलेगी।

चंद्रबाबू नायडू की रणनीतिक वापसी
तेलुगू देशम पार्टी (TDP) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए से दूरी बनाई थी, लेकिन 2024 में उन्होंने एक बार फिर भाजपा से हाथ मिला लिया। आंध्र प्रदेश में शानदार प्रदर्शन के बाद, उनकी केंद्रीय राजनीति में भूमिका को लेकर अटकलें तेज हैं। माना जा रहा है कि उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जा सकती है, जिससे आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज या अन्य लाभ भी मिल सकते हैं।

राजनीतिक मजबूरी या अवसरवाद?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव अवसरवाद का परिचायक है। क्षेत्रीय दलों के पास सीमित विकल्प हैं और केंद्र की सत्ता में भागीदारी उनके लिए फायदे का सौदा है। मोदी सरकार के साथ जुड़कर वे अपने राज्य के लिए अधिक संसाधन और राजनीतिक प्रभाव सुनिश्चित करना चाहते हैं।

मोदी के लिए रणनीतिक जीत
नीतीश और नायडू जैसे अनुभवी नेताओं का समर्थन प्रधानमंत्री मोदी को न केवल बहुमत का संख्यात्मक बल देता है, बल्कि यह विपक्ष को कमजोर कर एनडीए की छवि को संगठित और विश्वसनीय बनाता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि मोदी का नेतृत्व अब क्षेत्रीय दलों के लिए भी स्वीकार्य हो गया है।

भविष्य की दिशा तय करेगी यह नई साझेदारी
यह राजनीतिक पुनर्मिलन नीतिगत फैसलों, बजट और राज्यों की भागीदारी को भी प्रभावित करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये नेता केवल समर्थन तक सीमित रहेंगे या फिर केंद्र की नीति-निर्माण प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। यह गठबंधन भारतीय राजनीति में लचीलापन और रणनीतिक समझ का बेहतरीन उदाहरण बनकर उभर रहा है।

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