
नई दिल्ली: वैश्विक तनाव, आर्थिक अनिश्चितता और निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी के चलते भारत में सोने की कीमत ने ऐतिहासिक ऊंचाई छू ली है। पहली बार देश में सोने का दाम 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के पार पहुंच गया है। यह वृद्धि न केवल एक आर्थिक घटना है, बल्कि भारत में सोने के गहरे सांस्कृतिक और निवेश मूल्य को भी दर्शाती है।
1960 से अब तक सोने की कीमतों का सफर
1960 के दशक में जब सोने की कीमत महज 100 से 200 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, तब किसी ने कल्पना नहीं की थी कि आने वाले दशकों में यह मूल्य हजारों गुना बढ़ जाएगा। 1990 और 2000 के दशकों में कीमतों में स्थिर वृद्धि देखने को मिली, लेकिन 2010 के बाद से इसमें तेज उछाल आया। 2020 तक सोना 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया और अब 2025 में यह 1 लाख रुपये के स्तर को पार कर गया है।
कीमतों में उछाल के पीछे क्या हैं कारण?
सोने की बढ़ती कीमत के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारण हैं।
- अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक तनाव और टैरिफ युद्ध, खासतौर पर अमेरिका और चीन के बीच, निवेशकों को सोने की ओर मोड़ रहे हैं।
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता और लोन संकट ने भी निवेशकों को पारंपरिक और सुरक्षित विकल्प की ओर आकर्षित किया है।
- अमेरिकी डॉलर में कमजोरी, खासकर जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती की संभावना होती है, तो वैश्विक बाजारों में डॉलर आधारित सोना अधिक सुलभ और आकर्षक बन जाता है।
निवेश के रूप में सोने का महत्त्व
भारत में सोना न केवल एक आभूषण के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आर्थिक अस्थिरता के समय में एक सुरक्षित निवेश विकल्प भी माना जाता है। त्योहारों, शादियों और दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा के लिहाज से सोने की मांग लगातार बनी रहती है। मुद्रास्फीति के खिलाफ यह एक मजबूत कवच साबित होता रहा है।
भारत में सोने की कीमत का 1 लाख रुपये के स्तर को पार करना केवल एक आर्थिक उपलब्धि नहीं, बल्कि जनता के बदलते निवेश दृष्टिकोण और वैश्विक परिस्थितियों का भी प्रतिबिंब है। आने वाले समय में यदि वैश्विक तनाव और वित्तीय अनिश्चितता बनी रहती है, तो सोने की मांग और कीमतों में और भी इज़ाफा देखने को मिल सकता है।