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लद्दाख में सौर भवनों की बढ़ती जरूरत, पारंपरिक तकनीकों से बने घर बने पर्यावरण के अनुकूल समाधान

Growing need for solar buildings in Ladakh, houses made of traditional techniques become eco-friendly solution

लेह, लद्दाख: भारत का “ठंडा रेगिस्तान” कहे जाने वाले लद्दाख में सर्दियों के दौरान तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। यहां के harsh मौसम में घरों को गर्म रखने के लिए लकड़ी, गोबर और केरोसिन जलाना आम बात है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। इस समस्या का समाधान सौर भवनों (Solar Buildings) के रूप में सामने आया है, जो न केवल ऊर्जा-कुशल हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं।

ईंधन जलाने की समस्या और पर्यावरण पर असर

  • ठंड से बचने के लिए लकड़ी और ईंधन जलाने की बढ़ती जरूरत पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है
  • हीटिंग के लिए जलाए जाने वाले ईंधन से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है, जिससे लद्दाख का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है
  • हीटर और बुख़ारी का धुआं स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है, और घर के अंदर ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।

कैसे बनाए जाते हैं सौर भवन?

  • सौर भवनों को दक्षिण दिशा में बनाया जाता है ताकि अधिकतम धूप मिल सके।
  • दीवारों को थर्मोकोल, लकड़ी की छीलन और अन्य इंसुलेटिंग सामग्रियों से मोटा बनाया जाता है।
  • डबल ग्लास वाली खिड़कियां गर्मी को अंदर बनाए रखती हैं, जिससे सर्दियों में घर ठंडा नहीं होता।
  • निर्माण में मिट्टी के ब्लॉकों और पारंपरिक रैम्ड अर्थ तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिससे घर टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनते हैं।

सौर भवन क्यों हैं बेहतर विकल्प?

  • कभी भी माइनस तापमान पर नहीं जाता घर, सर्दियों में औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस तक बना रहता है।
  • हीटिंग की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे ईंधन जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोका जा सकता है।
  • ग्रीन बिल्डिंग तकनीक अपनाने से लद्दाख का पर्यावरण संरक्षित रहेगा।
  • सौर इन्सुलेशन जोड़ने से यह पूरी तरह से प्राकृतिक हीटिंग वाला घर बन जाता है।

पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का समावेश

  • रैम्ड अर्थ तकनीक (Rammed Earth Technique) का उपयोग कर टिकाऊ घर बनाए जा रहे हैं।
  • 5% सीमेंट या चूना मिलाने से दीवारें अधिक मज़बूत और जलवायु के अनुकूल बनती हैं।
  • पारंपरिक मिट्टी के घर गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते हैं, जबकि सीमेंट के घरों में यह समस्या बनी रहती है
  • थर्मस की तरह काम करने वाले घर, जो गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते हैं।

स्थानीय सामग्रियों के उपयोग पर जोर

  • स्थानीय निर्माण सामग्री जैसे मिट्टी, चिनार की लकड़ी और पत्थरों का उपयोग किया जा रहा है।
  • लद्दाख के शे-थिकसे क्षेत्र में मिट्टी की ईंटें और नुब्रा में पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है।
  • पारंपरिक तकनीकों और आधुनिक तरीकों का समावेश करके बेहतर टिकाऊ घर बनाए जा रहे हैं

निष्कर्ष: सौर भवन भविष्य की जरूरत

लद्दाख में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए सौर भवनों की मांग तेजी से बढ़ रही है। ये न केवल ऊर्जा-कुशल और पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान का भी उपयोग करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अधिक लोग सौर भवनों की ओर रुख करें तो ईंधन जलाने की जरूरत घटेगी और लद्दाख का पारिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहेगा

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