उत्तराखंड समेत देशभर के कई राज्यों में मानव-वन्यजीव संघर्ष तेजी से बढ़ रहा है, जिससे नई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। वन्यजीवों के हमलों और नुकसान से आक्रोशित लोग कई बार सड़कों पर प्रदर्शन करने को मजबूर हो जाते हैं। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि इंसान और वन्यजीवों के सह-अस्तित्व की बात अब किताबों तक सीमित रह गई है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में यह संघर्ष अधिक दिखाई देता है, जहां जंगली जानवरों के हमले लगातार बढ़ रहे हैं।
इस संघर्ष के बीच, हरियाणा और राजस्थान बॉर्डर पर स्थित बिश्नोई समाज वन्यजीव संरक्षण में एक मिसाल पेश कर रहा है। बिश्नोई समाज का वन्यजीवों के प्रति गहरा लगाव और उनका संरक्षण का जुनून पूरे देश के लिए एक अहम संदेश है। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने भी बिश्नोई समाज के प्रयासों को सराहते हुए उन्हें सम्मानित किया है।
बिश्नोई समाज का वन्यजीव संरक्षण में योगदान:
बिश्नोई समाज न केवल वन्यजीवों के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, बल्कि उन्होंने एक पूरा संस्थान भी बनाया है जो इस दिशा में कार्यरत है। काला हिरण, चिंकारा जैसे विलुप्त हो रहे प्रजातियों को बचाने के लिए बिश्नोई समाज द्वारा कई अभियानों की शुरुआत की गई है। अब तक उन्होंने भिवाड़ी, जींद, और आदमपुर के चौधरीवाला गांव जैसे क्षेत्रों में रिजर्व एरिया बनवाने में सफलता पाई है। इसके साथ ही, इस समाज ने शिकारियों को सजा दिलाने के लिए भी कानूनी पैरवी की है।
सरकार के साथ मिलकर काम:
बिश्नोई समाज के प्रयासों को देखते हुए सरकार ने भी उनके साथ मिलकर काम करने का निर्णय लिया है। वन्यजीवों के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाने की पहल की गई है, जहां 8 करोड़ की लागत से चार एकड़ जमीन पर सेंटर बनाने की घोषणा हुई है।
सलमान खान मामले से जुड़ा विरोध:
बिश्नोई समाज का वन्यजीव संरक्षण के प्रति समर्पण उस समय सुर्खियों में आया था जब उन्होंने काला हिरण शिकार मामले में अभिनेता सलमान खान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी। यह मामला कई सालों तक चला और अंततः सलमान को सजा भी सुनाई गई, जिससे यह साफ हुआ कि बिश्नोई समाज वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
उत्तराखंड के लिए सीख:
उत्तराखंड में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए बिश्नोई समाज के मॉडल को अपनाने की जरूरत है। प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने भी बिश्नोई समाज के वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह उत्तराखंड के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है।
निष्कर्ष:
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के चलते हालात गंभीर होते जा रहे हैं। इसे कम करने और वन्यजीवों के प्रति सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देने के लिए बिश्नोई समाज के आदर्शों को अपनाने की आवश्यकता है। उनके द्वारा दिखाया गया संरक्षण का रास्ता न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।