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ईरान-इसराइल तनाव बढ़ा, भारत पर क्या पड़ेगा असर?

Iran-Israel tension increased, what will be the impact on India?

नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में ईरान और इसराइल के बीच चल रही बढ़ती तनातनी न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रही है, बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव भारत जैसे देशों पर भी देखने को मिल सकते हैं। ईरान पर यदि इसराइल की सैन्य कार्रवाई बढ़ती है, तो यह सिर्फ़ पश्चिम एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों को नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक, ऊर्जा और रणनीतिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकती है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

भारत और ईरान के संबंध केवल कूटनीतिक स्तर तक सीमित नहीं रहे हैं। भाषा, संस्कृति और परंपरा के स्तर पर भी दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते रहे हैं। 1947 से पहले तक भारत की सीमा ईरान से जुड़ी थी, लेकिन विभाजन के बाद यह सरहद पाकिस्तान को लगने लगी। इसके बावजूद दोनों देशों ने 1950 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे।

हालांकि, 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आया और वह अमेरिकी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था का खुला विरोधी बन गया। भारत ने भी हमेशा एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World) की वकालत की है, जिसमें किसी एक महाशक्ति की हुकूमत न चले।

वर्तमान तनाव और भारत की ऊर्जा सुरक्षा

भारत अपनी तेल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया से प्राप्त करता है, और ईरान ऐतिहासिक रूप से इस आपूर्ति श्रृंखला का एक अहम हिस्सा रहा है। यदि ईरान-इसराइल संघर्ष गहराता है, तो खाड़ी क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है, जिससे तेल की कीमतों में उछाल और आपूर्ति में बाधा आ सकती है।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा इससे सीधे प्रभावित होगी। विशेष रूप से तब, जब वैश्विक बाज़ार में तेल की कीमतें अस्थिर हो जाती हैं, तो उसका असर भारत की आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति पर पड़ता है।

चाबहार परियोजना पर प्रभाव

भारत द्वारा ईरान में विकसित की जा रही चाबहार बंदरगाह परियोजना सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यदि ईरान में अशांति बढ़ती है या अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और गहरे हो जाते हैं, तो इस परियोजना पर संकट आ सकता है। इससे भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा संपर्क स्थापित करने की रणनीति भी प्रभावित हो सकती है।

राजनयिक संतुलन की चुनौती

भारत इसराइल और ईरान दोनों के साथ अलग-अलग रणनीतिक हित साझा करता है। एक ओर वह इसराइल के साथ रक्षा तकनीक, कृषि और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर ईरान के साथ उसकी ऊर्जा और क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाएं भी चल रही हैं।

ऐसे में भारत के लिए यह एक राजनयिक संतुलन साधने की स्थिति है — जहाँ उसे बिना किसी पक्ष को नाराज़ किए, अपने हितों की रक्षा करनी होगी।

वैश्विक शक्ति संतुलन पर असर

भारत जैसे देश जो अमेरिका-चीन की प्रतिस्पर्धा के बीच स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति का पालन करते हैं, उनके लिए इस तनाव का एक बड़ा मतलब है — एकध्रुवीय दुनिया से बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ना। ईरान की भूमिका इस व्यवस्था में पश्चिम एशिया के भीतर शक्ति संतुलन को पुनः परिभाषित कर सकती है।

निष्कर्ष

ईरान और इसराइल के बीच यदि सैन्य संघर्ष लंबा चलता है, तो यह न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा, कूटनीति और भू-राजनीति को प्रभावित करेगा। भारत के लिए यह समय है, जब उसे बेहद संतुलन और रणनीतिक सूझबूझ के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना होगा।

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