
भारत में उच्च शिक्षा के नए युग की शुरुआत, विदेशी संस्थानों का बढ़ता रुझान
भारत में लागू की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव की नींव रखी है। इस नीति के तहत अब विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने भौतिक कैंपस स्थापित करने की अनुमति मिल गई है। इसी क्रम में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्प्टन इस वर्ष दिल्ली में अपने पहले भारतीय कैंपस की कक्षाएं शुरू करने जा रही है।
GIFT सिटी बना विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए आकर्षण का केंद्र
गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT City) इस बदलाव का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है। यहां विदेशी संस्थानों को टैक्स में भारी छूट दी जा रही है, जिससे यह क्षेत्र वैश्विक निवेश के लिए एक आदर्श गंतव्य बन गया है। ऑस्ट्रेलिया की दो प्रमुख यूनिवर्सिटियां—डीकिन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ वूलोंगॉन्ग—ने पहले ही GIFT सिटी में अपने कैंपस शुरू कर दिए हैं।
उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग, भारत बना वैश्विक संस्थानों का नया केंद्र
भारत की विशाल जनसंख्या और उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग ने विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां निवेश के लिए प्रेरित किया है। भारत सरकार ने 2035 तक सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrollment Ratio – GER) को 40% तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए देश में शैक्षणिक ढांचे को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
घटते नामांकन का हल और नया बाजार, दोनों है भारत
विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत न केवल अपने देश में घटते छात्र नामांकन की समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है, बल्कि एक नया और उभरता हुआ बाजार भी है। भारत में विस्तार करके ये संस्थान न केवल नई संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय छात्रों को वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान करने का अवसर भी दे रहे हैं।
विदेशी विश्वविद्यालयों का बढ़ता निवेश, भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए वरदान
NEP 2020 के तहत विदेशी विश्वविद्यालयों का भारत में आना उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धा और वैश्विक मानकों के लिहाज से सकारात्मक कदम माना जा रहा है। इससे भारतीय छात्रों को देश में ही अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा और देश की शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा मिलेगी।