
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी किए गए लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, 27 दिसंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4.112 बिलियन डॉलर घटकर 640.279 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले आठ महीनों में सबसे निचला स्तर है। इससे पहले, 20 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में भंडार 8.478 बिलियन डॉलर की बड़ी गिरावट के साथ 644.391 बिलियन डॉलर रह गया था। पिछले कुछ सप्ताहों से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।
भंडार में गिरावट के मुख्य कारण
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये में अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई द्वारा विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप और पुनर्मूल्यांकन इस गिरावट के प्रमुख कारण हैं।
सितंबर के अंत में, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था। लेकिन इसके बाद से इसमें गिरावट का रुख देखा गया है।
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने बताया कि आरबीआई ने 4.641 बिलियन डॉलर की बिक्री की, जिसके कारण भंडार में 4.112 बिलियन डॉलर की कमी आई। उन्होंने यह भी कहा कि आरबीआई ने महीने के अंत में मैच्योर होने वाली शॉर्ट डॉलर पोजीशन को बंद करने के लिए एनडीएफ (नॉन-डिलीवरेबल फॉरवर्ड) और वायदा बाजार में डॉलर खरीदारी की।
रुपये की अस्थिरता और विदेशी मुद्रा बाजार पर प्रभाव
भंडार में गिरावट के इस दौर में रुपये की स्थिति में भी उतार-चढ़ाव देखा गया। 27 दिसंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान रुपया 84.99 से गिरकर 85.82 तक पहुंचा और अंततः 85.5325 पर बंद हुआ। यह दर्शाता है कि विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सीधा असर रुपये की स्थिरता पर पड़ रहा है।
आरबीआई की रणनीति और प्रभाव
आरबीआई ने पिछले कुछ हफ्तों में रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप किया है। बाजार में हस्तक्षेप के तहत डॉलर की बिक्री और खरीदारी की गई, जिससे अल्पकालिक राहत तो मिली, लेकिन भंडार पर दबाव बढ़ गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई की रणनीति अल्पकालिक अस्थिरता को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है, लेकिन इसे संतुलित करने के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण आवश्यक है।
भविष्य की चुनौतियां और उपाय
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ-साथ घरेलू आर्थिक नीतियों के लिए भी चुनौती पेश कर रही है।
- तेल आयात पर दबाव: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और आयात की निर्भरता विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित कर सकती है।
- निवेशकों की धारणा: विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के विश्वास को प्रभावित कर सकती है।
विशेषज्ञों की राय
अनिल कुमार भंसाली ने कहा कि आरबीआई के लिए आने वाले महीनों में रुपये की स्थिरता और विदेशी मुद्रा भंडार के बीच संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने सुझाव दिया कि देश को निर्यात को प्रोत्साहित करने और विदेशी निवेश आकर्षित करने पर जोर देना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार आठ महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है, जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक संकेत है। हालांकि, आरबीआई रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। ऐसे में, दीर्घकालिक आर्थिक नीतियों और मजबूत वित्तीय प्रबंधन से इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
आने वाले समय में, सरकार और आरबीआई की नीतियां इस स्थिति को बेहतर करने में कितना सफल होती हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।