महाकुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे पवित्र आयोजनों में से एक माना जाता है, जिसमें श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य प्राप्त करते हैं। यह मेला विशेष ग्रह स्थिति के आधार पर आयोजित होता है और इस दौरान नदियों का जल अमृत के समान माना जाता है। हालांकि, महाकुंभ में स्नान करते समय कुछ विशेष धार्मिक नियमों का पालन करना जरूरी है।
महाकुंभ में स्नान के नियम
- नागा साधुओं का स्नान पहले
महाकुंभ के दिन सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद ही अन्य श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। नागा साधुओं के सामने स्नान करना धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं माना जाता है। - पाँच बार स्नान का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करते समय श्रद्धालुओं को पाँच बार स्नान करना चाहिए, जिससे उनका कुंभ स्नान पूरा माना जाता है। - सूर्य देव को अर्घ्य देना
स्नान के बाद श्रद्धालुओं को सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और पुण्य की प्राप्ति होती है। - मंदिरों के दर्शन
कुंभ स्नान के बाद प्रयागराज में अदवे हनुमानजी या नागवासुकि मंदिर में दर्शन करने की सलाह दी जाती है। इन मंदिरों के दर्शन से भक्तों की धार्मिक यात्रा पूरी मानी जाती है।
शाही स्नान और नागा साधुओं की परंपरा
महाकुंभ के शाही स्नान के दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। यह परंपरा अंग्रेजों के शासनकाल में शुरू हुई थी जब नागा साधुओं को पहले स्नान का अधिकार दिया गया था। पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत की बूंदें प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में गिरीं। नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी होते हैं और उन्हें उनकी तपस्या और साधना के कारण पहले स्नान का अधिकार दिया गया।
महाकुंभ के शाही स्नान का महत्व
महाकुंभ के शाही स्नान में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं, जिनमें से कई लोग त्रिवेणी घाट पर स्नान करने के लिए आते हैं। इस दौरान, शाही स्नान का विशेष महत्व होता है, जो जीवन में सुख-समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति का कारण माना जाता है।