
यूजर के ‘प्लीज’ और ‘थैक्यू’ के कारण बढ़ी कम्प्यूटेशनल लागत, AI की ऊर्जा खपत में वृद्धि
नई दिल्ली – OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने हाल ही में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है कि चैटजीपीटी के प्रति यूजर की पोलाइटनेस, जैसे ‘प्लीज’ और ‘थैंक्यू’, न केवल अच्छा व्यवहार दिखाता है, बल्कि इससे कंपनी को लाखों डॉलर का नुकसान भी हो रहा है। उनका कहना है कि इन सरल वाक्यांशों के कारण सिस्टम पर अतिरिक्त कम्प्यूटेशनल तनाव पड़ रहा है, जिससे परिचालन खर्च बढ़ रहे हैं।
AI सिस्टम पर अतिरिक्त कम्प्यूटेशनल कार्यभार
सैम ऑल्टमैन के मुताबिक, जब यूजर्स अपने सवालों में ‘प्लीज’ और ‘थैंक्यू’ का इस्तेमाल करते हैं, तो इसका मतलब है कि AI को अतिरिक्त इनपुट और आउटपुट खर्च करने पड़ते हैं। परिणामस्वरूप, AI को अधिक ऊर्जा और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं, जिससे कम्प्यूटेशनल कार्यभार बढ़ जाता है। हालांकि व्यक्तिगत प्रश्नों में ऊर्जा की खपत कम होती है, लेकिन अरबों सवालों के साथ, यह खर्च काफी बढ़ जाता है।
AI के सवालों का ऊर्जा खर्च
OpenAI के चैटजीपीटी-4 मॉडल से पूछे गए हर सवाल में लगभग 2.9 वाट-घंटे की बिजली की खपत होती है, जो कि Google खोज के मुकाबले लगभग 10 गुना अधिक है। OpenAI के सिस्टम प्रतिदिन 1 बिलियन से अधिक सवालों का जवाब देते हैं, जिससे प्रतिदिन लगभग 2.9 मिलियन किलोवाट-घंटे बिजली की खपत होती है। यह ऊर्जा की खपत न केवल पैसे की दृष्टि से महंगी है, बल्कि पर्यावरण पर भी बड़ा असर डाल सकती है।
AI की ऊर्जा खपत का वैश्विक असर
AI की बढ़ती ऊर्जा खपत एक वैश्विक समस्या बनती जा रही है। इलेक्ट्रिक पावर रिसर्च इंस्टीट्यूट (EPRI) का अनुमान है कि 2030 तक AI वाले डेटा सेंटर अमेरिका की बिजली खपत का 9.1 फीसदी हिस्सा ले सकते हैं। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि अगले दशक के अंत तक अर्थव्यवस्था में बिजली की बढ़ोतरी में AI और डेटा सेंटर का योगदान 20 फीसदी से अधिक हो सकता है।
कंपनियों को ऊर्जा खपत की नई चुनौतियाँ
सैम ऑल्टमैन का यह खुलासा AI टेक्नोलॉजी की बढ़ती ऊर्जा खपत और इसके पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर नई चर्चाएँ शुरू कर सकता है। कंपनियों को अब यह सोचने की जरूरत है कि कैसे एआई मॉडल्स की ऊर्जा खपत को कम किया जा सकता है, ताकि यह न केवल आर्थिक रूप से किफायती हो, बल्कि पर्यावरण पर भी कम दबाव डाले।