श्रीनगर: उत्तराखंड के पारंपरिक खेलों की सूची में शामिल मुर्गा झपट, जो कभी पहाड़ के हर गांव और स्कूल में बच्चों की पसंदीदा गतिविधि हुआ करता था, अब नई पीढ़ी में फिर से लोकप्रिय हो रहा है। आधुनिक तकनीक और वीडियो गेम्स के दौर में विलुप्ति की कगार पर पहुंचे इस खेल को उत्तराखंड सरकार के प्रयासों से एक नई पहचान मिल रही है।
खेल महाकुंभ में शामिल हुआ मुर्गा झपट: पौड़ी गढ़वाल जिले में आयोजित खेल महाकुंभ में पहली बार मुर्गा झपट को प्रतियोगिता के रूप में शामिल किया गया। यह पहल न केवल खेल को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि नई पीढ़ी में इसके प्रति रुचि बढ़ाने का भी माध्यम है। छात्रों ने इस खेल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
38वें राष्ट्रीय खेलों में हो सकता है प्रदर्शन: उत्तराखंड के खेल विभाग ने अगले साल की शुरुआत में होने वाले 38वें राष्ट्रीय खेलों में मुर्गा झपट को प्रदर्शनी खेल के तौर पर शामिल किए जाने का प्रस्ताव भेजा है। इससे यह उम्मीद बंधती है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इस पारंपरिक खेल की झलक देखने को मिलेगी।
खेल की तकनीक और कौशल: मुर्गा झपट में दो खिलाड़ी अपने एक पैर को उठाकर हाथ से पकड़ते हैं और कंधे के बल से एक-दूसरे को गोले से बाहर धकेलने का प्रयास करते हैं। इस खेल में संतुलन, शक्ति और एकाग्रता की परीक्षा होती है। जिन खिलाड़ियों की कमर, पैरों और कंधों में ताकत होती है, वे विजेता बनते हैं।
युवा पीढ़ी में बढ़ी रुचि: युवा कल्याण अधिकारी रवींद्र फोनिया ने बताया कि नई पीढ़ी इस खेल को तेजी से अपना रही है। इसके प्रशिक्षण के लिए विशेष कोच भी नियुक्त किए जा रहे हैं। कोच सतीश चंद्र ने कहा कि उनकी कोशिश होगी कि नेशनल गेम्स में उत्तराखंड की टीम बेहतर प्रदर्शन करे और देशभर में इस खेल को पहचान दिलाए।
संरक्षण और विकास की पहल: उत्तराखंड के पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने की दिशा में मुर्गा झपट एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन रहा है। यह पहल न केवल खेल संस्कृति को संरक्षित करेगी, बल्कि राज्य के पर्यटन और युवा सशक्तिकरण को भी बढ़ावा देगी।