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One Nation-One Election:कैबिनेट ने दी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को मंजूरी, अमित शाह ने 100 दिन पूरे होने पर दिए थे संकेत”

Cabinet approves 'One Nation, One Election', Amit Shah had hinted at it on completion of 100 days"

केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी सुधार की दिशा में कदम बढ़ाते हुए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दे दी है। इस फैसले का मुख्य उद्देश्य देश में चुनाव प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और समय व संसाधनों की बचत करना है। इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इससे देश के अलग-अलग हिस्सों में बार-बार होने वाले चुनावों से बचा जा सकेगा, जिससे विकास की गति को बढ़ावा मिलेगा।

अमित शाह ने दिए थे संकेत

 

इस महत्वपूर्ण फैसले की ओर इशारा पहले ही गृह मंत्री अमित शाह ने किया था, जब उन्होंने सरकार के 100 दिन पूरे होने पर इसका जिक्र किया था। शाह ने तब संकेत दिए थे कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की योजना पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। उनका मानना है कि यह पहल देश की चुनावी प्रणाली में बड़ा बदलाव लाने वाली होगी, जिससे न केवल बार-बार होने वाले चुनावों से समय की बचत होगी, बल्कि देश को बार-बार चुनावी प्रक्रियाओं से गुजरने की जटिलता से भी छुटकारा मिलेगा।

शाह ने यह भी कहा कि बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि जब भी चुनाव होते हैं, आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे सरकारी कामकाज धीमा पड़ जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक साथ चुनाव होने से सरकारों को बिना किसी व्यवधान के विकास के काम को पूरा करने में मदद मिलेगी।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लाभ

 

इस प्रस्ताव को सरकार ने एक ‘गेम चेंजर’ के रूप में प्रस्तुत किया है। इसके कई लाभ गिनाए जा रहे हैं, जैसे कि:

1. संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव कराने में धन और मानव संसाधनों की अत्यधिक खपत होती है। एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खर्चों में कमी आएगी।

2. चुनावी थकान से मुक्ति:  जनता और राजनैतिक दलों दोनों के लिए बार-बार चुनावी माहौल में रहना चुनौतीपूर्ण होता है। इससे मतदाताओं को चुनावी थकान से छुटकारा मिलेगा और राजनीतिक स्थिरता बढ़ेगी।

3. विकास की गति: बार-बार चुनाव होने से कई बार आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे विकास कार्यों पर रोक लग जाती है। एक साथ चुनाव होने से विकास कार्य निर्बाध रूप से जारी रहेंगे।

4. पारदर्शिता और प्रभावशीलता: चुनाव आयोग की भूमिका भी इस प्रस्ताव से और अधिक पारदर्शी और प्रभावी होगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में सुधार होगा।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

 

हालांकि सरकार ने इसे एक बड़े सुधार के रूप में पेश किया है, लेकिन विपक्षी दल इस पर असहमति जता रहे हैं। विपक्ष का मानना है कि यह फैसला देश की विविधता को ध्यान में नहीं रखता। उनका तर्क है कि देश के विभिन्न राज्यों की राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां अलग-अलग हैं, और एक साथ चुनाव कराने से इन राज्यों की स्थानीय समस्याएं और मुद्दे अनदेखे रह सकते हैं।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और कई अन्य दलों ने इस फैसले की आलोचना की है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह योजना लोकतांत्रिक प्रणाली को कमजोर कर सकती है, क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के अलग-अलग मुद्दे होते हैं।

संवैधानिक चुनौतियां

 

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें चुनाव आयोग, राज्यों और संसद के बीच व्यापक सहमति की जरूरत होगी।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इसे लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83(2), 172 और 356 में संशोधन करना पड़ सकता है। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों को भी एक सहमति पर पहुंचना होगा ताकि उनकी विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित किया जा सके।

आगे की राह

 

इस फैसले के बाद, अब इस पर विस्तृत चर्चा और बहस की उम्मीद की जा रही है। सरकार इस योजना को लेकर संसद में एक प्रस्ताव पेश कर सकती है, जहां इसके कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर विचार-विमर्श होगा।

सरकार का मानना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश को अधिक स्थिरता, बेहतर प्रशासन और तेज विकास की दिशा में ले जाएगा। वहीं, विपक्ष का मानना है कि इस योजना के क्रियान्वयन से पहले गहन विचार-विमर्श और राज्यों की भूमिका को सुनिश्चित करना जरूरी है।

जनता की प्रतिक्रिया

 

इस बड़े फैसले के बाद अब जनता की राय भी महत्वपूर्ण होगी। कुछ लोग इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सुधार के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इससे राज्यों के अधिकार कम हो सकते हैं। सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर इस फैसले को लेकर बहस तेज हो गई है, और आने वाले दिनों में यह मुद्दा देश की राजनीति में प्रमुखता से उभरेगा।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले से भारतीय लोकतंत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे किस तरह से लागू किया जाता है और इस पर जनता और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया कैसी होती है।

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