नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद, दिल्ली सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ या कृत्रिम बारिश के प्रयोग पर जोर दिया है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इस संबंध में केंद्र सरकार से तत्काल बैठक बुलाने और इस योजना को मंजूरी देने की अपील की है।
क्या है क्लाउड सीडिंग और कैसे काम करता है?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, या ड्राई आइस जैसे रसायनों को हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर के माध्यम से बादलों में छोड़ा जाता है। ये रसायन जल वाष्प को आकर्षित करते हैं और बर्फ के क्रिस्टल का निर्माण कर बारिश को ट्रिगर करते हैं।
क्लाउड सीडिंग दो प्रकार की होती है:
– हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: इसमें नमक के कणों का उपयोग कर बारिश की बूंदें बनाईं जाती हैं।
– ग्लेशियोजेनिक क्लाउड सीडिंग: सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस का उपयोग कर सुपरकूल्ड बादलों में बर्फ बनाकर बारिश कराई जाती है।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की योजना
इस प्रक्रिया को दो चरणों में लागू किया जाएगा। अनुमान है कि प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लिए 1 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पिछली बार नवंबर 2022 में इस योजना पर विचार किया गया था, लेकिन प्रतिकूल मौसम के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका था।
अन्य देशों में क्लाउड सीडिंग का प्रभाव
-पाकिस्तान: दिसंबर 2023 में लाहौर में क्लाउड सीडिंग से AQI 300 से 189 तक गिर गया था।
– भारत: पश्चिमी घाटों में 2018 से इसके परीक्षण चल रहे हैं, लेकिन वायु गुणवत्ता पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन अभी तक नहीं किया गया है।
क्या कहती है दिल्ली सरकार?
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि प्रदूषण से राहत के लिए कृत्रिम बारिश महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। उन्होंने केंद्र से अपील की कि इस योजना को जल्द मंजूरी दी जाए ताकि दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार हो सके।
दिल्ली के गंभीर प्रदूषण स्तर को देखते हुए, क्लाउड सीडिंग एक संभावित समाधान के रूप में उभर रही है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह देश के अन्य शहरों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है।