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जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

President, PM and other leaders paid tribute on the anniversary of Jallianwala Bagh massacre

नई दिल्ली:13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई प्रमुख नेताओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर राष्ट्र भर में शोक और सम्मान की भावना के साथ उन वीर बलिदानियों को याद किया गया, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता का सामना करते हुए देश के स्वतंत्रता संग्राम में नया संकल्प भरा।

राष्ट्रपति मुर्मू ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “जलियांवाला बाग में भारत माता के लिए मर मिटने वाले सभी स्वाधीनता सेनानियों को सादर श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। उनके बलिदान से स्वाधीनता संग्राम की धारा और प्रबल हो गई थी। भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा।”

प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस अवसर पर लिखा, “हम जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। उनका बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। यह घटना हमारे इतिहास का एक काला अध्याय रही है जिसे आने वाली पीढ़ियां कभी नहीं भूलेंगी।”

केंद्रीय नेताओं ने भी किया स्मरण
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को “अमानवीयता की पराकाष्ठा” बताते हुए कहा कि इस घटना ने स्वतंत्रता आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बना दिया। वहीं, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखा कि 1919 की उस वीभत्स घटना ने राष्ट्रीय चेतना को नई दिशा दी और स्वतंत्रता की लहर को और प्रबल किया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि शहीदों का साहस और बलिदान हमारी आज़ादी की नींव का आधार है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

जलियांवाला बाग हत्याकांड: एक ऐतिहासिक क्रूरता
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोग बैसाखी के दिन रौलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए थे। तभी ब्रिटिश अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के निहत्थे भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। ब्रिटिश आंकड़ों के अनुसार 291 लोग मारे गए, जबकि भारतीय नेताओं का दावा था कि यह संख्या 500 से अधिक थी।

इस वीभत्स कांड ने पूरे भारत में ब्रिटिश राज के खिलाफ आक्रोश की लहर पैदा कर दी थी और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। आज भी यह घटना साहस, बलिदान और प्रतिरोध का प्रतीक मानी जाती है।

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