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भीख मांगने वाले बच्चों के लिए मसीहा बने रामजी मांझी, ‘सेनानी स्कूल’ में सैकड़ों बच्चों को मिल रही नई जिंदगी

Ramji Manjhi became the messiah for the begging children, hundreds of children are getting a new life in 'Senani School'

गया के सामाजिक कार्यकर्ता की अनोखी पहल

बिहार के गया जिले में रहने वाले रामजी मांझी (50 वर्ष) ने अपनी जिंदगी को सामाजिक सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। सिर्फ पांचवीं कक्षा तक पढ़े रामजी मांझी ने एक ऐसा स्कूल शुरू किया, जिसने भीख मांगने वाले बच्चों का भविष्य संवार दिया। करीब 15 साल पहले, जब उन्होंने महाबोधि मंदिर के आसपास बच्चों को भीख मांगते हुए देखा, तो उनके मन में यह सवाल उठा कि आखिर इन बच्चों का भविष्य क्या होगा? तभी उन्होंने तय किया कि इन बच्चों को शिक्षित करके समाज की मुख्यधारा से जोड़ेंगे।

बंद पड़े चरवाहा स्कूल को बना दिया शिक्षा का मंदिर

रामजी मांझी ने अपने प्रयासों से 2011 में एक बंद पड़े चरवाहा स्कूल को फिर से शुरू किया और वहां भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। यह वही चरवाहा स्कूल था, जिसे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में खोला गया था, लेकिन बाद में यह बंद हो गया। धीरे-धीरे, उनकी इस पहल को पहचान मिलने लगी और अब यहां 170 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

भीख के कटोरे से किताबों तक का सफर

रामजी मांझी के प्रयासों का असर यह हुआ कि जो बच्चे कभी मंदिरों के बाहर भीख मांगते थे, आज वे किताबें पकड़कर अपना भविष्य संवार रहे हैं। स्कूल में पढ़ने वाले लगभग 100 बच्चे वे हैं जो कभी महाबोधि मंदिर और आसपास भीख मांगते थे। अब वे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ विदेशी भाषाएं भी सीख रहे हैं।

तीन कट्ठा जमीन बेचकर स्कूल की नींव रखी

रामजी मांझी ने इस स्कूल को खड़ा करने के लिए अपनी तीन कट्ठा जमीन बेच दी। आज उनकी मेहनत रंग ला रही है और उनके स्कूल में 10 शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं। खास बात यह है कि इन शिक्षकों में कई ऐसे युवा भी हैं, जिन्होंने खुद इसी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी और अब वे दूसरों को शिक्षित कर रहे हैं।

गरीबी को मिटाने का सबसे बड़ा हथियार – शिक्षा

रामजी मांझी का मानना है कि बच्चों को अगर पैसा दिया जाए तो वह खत्म हो सकता है, लेकिन शिक्षा दी जाए तो वह जीवनभर उनके साथ रहेगी। यही सोचकर उन्होंने इन बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने कहा,

“अगर हम इन बच्चों को शिक्षित कर दें, तो गरीबी खुद-ब-खुद मिट जाएगी। मेरा लक्ष्य है कि बच्चे सिर्फ पढ़ें ही नहीं, बल्कि वे देसी और विदेशी भाषाओं में भी निपुण हों।”

अंग्रेजी और विदेशी भाषाएं सीख रहे बच्चे

इस स्कूल में बच्चों को थाईलैंड और तिब्बती भाषा भी सिखाई जा रही है, ताकि वे बोधगया आने वाले विदेशी पर्यटकों के साथ बातचीत कर सकें और अपने रोजगार के अवसर बढ़ा सकें।

कक्षा 4 के छात्र कपिल कुमार कहते हैं, “मैं बड़ा होकर पुलिस अधिकारी बनना चाहता हूं, लेकिन साथ ही तिब्बती भाषा भी सीख रहा हूं ताकि विदेशी नागरिकों की मदद कर सकूं। अगर मैं अधिकारी नहीं बन पाया, तो ट्रांसलेटर बनकर अपना भविष्य संवारूंगा।”

वहीं, छात्रा सोनम कुमारी का कहना है, “पहले भीख मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, लेकिन अब हम हिंदी, अंग्रेजी और विदेशी भाषाएं सीख रहे हैं। अगर हम आगे कुछ बड़ा नहीं कर पाए, तो भी इन भाषाओं की मदद से हम बोधगया में रोजगार पा सकते हैं।”

इंग्लिश सीखकर लंदन जाने का सपना

कक्षा 4 के छात्र राहुल कुमार को इंग्लिश सीखने का बहुत शौक है। वे क्लास में बोर्ड पर लिखकर बाकी बच्चों को रिवीजन कराते हैं। उनका सपना है कि वे आगे चलकर लंदन जाएं और वहां नौकरी करें। राहुल कहते हैं,
“पहले भीख मांगना अच्छा लगता था, लेकिन अब पढ़ना अच्छा लगता है। मैं इंग्लिश सीखकर लंदन जाना चाहता हूं और वहां नौकरी करना चाहता हूं।”

सेनानी स्कूल के पूर्व छात्र अब शिक्षक बनकर दे रहे शिक्षा

इस स्कूल से पढ़े कई बच्चे अब शिक्षक बन गए हैं और दूसरों को भी शिक्षित कर रहे हैं। टीचर जीतन कुमार, जो खुद इसी स्कूल के पूर्व छात्र हैं, कहते हैं, “मैंने यहीं से पढ़ाई की, फिर सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास किया और ग्रेजुएशन के बाद थाईलैंड की भाषा सीखी। अब मैं यहां बच्चों को हिंदी के साथ-साथ थाई भाषा भी सिखा रहा हूं।”

इसी तरह, शिक्षिका सिमरन देवी बताती हैं कि रामजी मांझी खुद ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे हिंदी और तिब्बती भाषा में बच्चों को आसानी से पढ़ा लेते हैं

भीख से शिक्षा तक – एक क्रांतिकारी बदलाव

रामजी मांझी का यह स्कूल न केवल भीख मांगने वाले बच्चों को एक नई जिंदगी दे रहा है, बल्कि यह साबित कर रहा है कि सच्ची लगन और मेहनत से बदलाव संभव है। उनके प्रयासों से आज सैकड़ों बच्चे शिक्षित हो रहे हैं और समाज की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं।

रामजी मांझी के प्रयासों से प्रेरणा लेकर अगर समाज के और लोग आगे आएं, तो कोई भी बच्चा भीख मांगने को मजबूर नहीं होगा।

 

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