
देहरादून: उत्तराखंड में लंबे समय से सख्त भू-कानून की मांग की जा रही थी, जिसे धामी कैबिनेट ने आज मंजूरी दे दी। बजट सत्र के दौरान सरकार ने राज्य की भूमि संरक्षण को ध्यान में रखते हुए यह अहम निर्णय लिया। इस नए भू-कानून के तहत बाहरी लोग अब हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य 11 जिलों में कृषि और बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे।
राज्य गठन से अब तक भू-कानून में हुए बदलाव
➡ 2000 – उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ।
➡ 2002 – कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम-1950 के तहत भू-कानून लागू किया।
➡ 2004 – भू-कानून में संशोधन, बाहरी लोगों के लिए 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीदने की सीमा तय।
➡ 2007 – भाजपा सरकार ने इस सीमा को 500 से घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया।
➡ 2018 – त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में बड़ा बदलाव कर सीलिंग समाप्त कर दी, जिससे जमीन खरीदने की खुली छूट मिल गई।
2018 के संशोधन के बाद बढ़ी सख्त भू-कानून की मांग
2018 में इन्वेस्टर्स समिट से पहले भू-कानून में बड़े बदलाव किए गए थे, जिससे बाहरी लोगों द्वारा भारी मात्रा में जमीन खरीदने की घटनाएं सामने आईं। इसको लेकर राज्य के लोगों ने सख्त भू-कानून की मांग तेज कर दी।
➡ 2021 – सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भू-कानून की समीक्षा के लिए समिति का गठन किया।
➡ 2022 – उच्च स्तरीय समिति ने 80 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जिसमें 23 सुझाव दिए गए।
धामी कैबिनेट का नया भू-कानून: क्या बदलेगा?
✅ हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य 11 जिलों में बाहरी लोग कृषि व बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे।
✅ विशेष प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
✅ भूमि खरीदने वालों को सब-रजिस्ट्रार के समक्ष शपथ पत्र देना होगा।
भू-कानून को लेकर क्या बोले मुख्यमंत्री धामी?
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह नया भू-कानून राज्य के हित में है और इससे प्रदेश की भूमि को अनियंत्रित खरीद-बिक्री से बचाया जा सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि निवेश और विकास के बीच संतुलन बनाकर स्थानीय लोगों की जमीनों को सुरक्षित किया जाएगा।
📌 उत्तराखंड में सख्त भू-कानून लागू होने से बाहरी निवेशकों की अनियंत्रित खरीद पर रोक लगेगी और राज्य की भूमि को बचाने में मदद मिलेगी।