
केदारनाथ धाम के कपाट बंद करने की प्रक्रिया एक परंपरागत और पवित्र आयोजन है, जो हर साल शीतकाल के आगमन के साथ ही संपन्न होती है। यह आयोजन चारधाम यात्रा के समापन का प्रतीक होता है, जिसमें विशेष पूजा-अर्चना के बाद भगवान शिव की मूर्ति को ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ में स्थानांतरित किया जाता है, जहां वे शीतकाल के दौरान पूजे जाते हैं।
इस वर्ष केदारनाथ धाम को दीपावली के मौके पर विशेष रूप से सजाया गया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि श्रद्धालुओं और भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिर को 10 क्विंटल से अधिक रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया है। इस तरह की भव्य सजावट कपाट बंद होने के मौके पर श्रद्धालुओं को एक अंतिम दर्शन का अनोखा अनुभव प्रदान करती है।
कपाट बंद करने की मुख्य रस्में:
1. सोने का छत्र हटाना: केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थित सोने का छत्र, जो भगवान के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है, उसे भंडार गृह में सुरक्षित रख दिया गया है। यह छत्र हर साल कपाट बंद होने से पहले उतारा जाता है।
2. समाधि पूजन: 2 नवंबर को समाधि पूजन किया जाएगा, जो भगवान केदारनाथ की सालभर की पूजा का समापन और शीतकाल के दौरान उखीमठ में होने वाली पूजा की शुरुआत मानी जाती है।
3. शीतकाल के लिए प्रतिमा का विस्थापन: केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भगवान की प्रतिमा को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाएगा, जहां वह पूरे शीतकाल में पूजे जाएंगे।
अन्य प्रमुख केदारों के कपाट बंद होने की तिथियां:
– तुंगनाथ धाम (तृतीय केदार): 4 नवंबर
– मद्महेश्वर धाम (द्वितीय केदार): 20 नवंबर
– बदरीनाथ धाम: 17 नवंबर
शीतकाल की चुनौतियां और व्यवस्थाएं
कपाट बंद होने के बाद केदारनाथ क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है, जिससे यह क्षेत्र लगभग छह महीने तक यात्रियों के लिए बंद रहता है। इस दौरान मंदिर की देखभाल बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति और प्रशासन की टीम करती है। वहीं, उखीमठ में भगवान केदारनाथ की पूजा विधि-विधान से की जाती है ताकि श्रद्धालु इस दौरान भी भगवान के दर्शन और पूजन कर सकें।
इस वर्ष, पिछले सालों की तुलना में भक्तों की अधिक संख्या को देखते हुए खास सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्थाएं की गई हैं ताकि श्रद्धालु सुरक्षित और सुखद यात्रा अनुभव के साथ लौट सकें।