
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि पीड़ित बच्ची के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को असंवेदनशील करार देते हुए हाईकोर्ट के जज को फटकार लगाई।
स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोका हाईकोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 17 मार्च 2025 को पारित आदेश पर स्वतः संज्ञान लिया था। यह मामला ‘वी द वूमन ऑफ इंडिया’ नामक संगठन द्वारा अदालत के संज्ञान में लाया गया, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर कार्रवाई की।
बुधवार को न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले जज की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता दिखाई गई है। यह आदेश न केवल कानून के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि समाज में गलत संदेश भी भेजता है।”
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
पीठ ने अपने आदेश में हाईकोर्ट के निर्णय पर गंभीर आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस पर विचार किया गया था, लेकिन फिर भी इस तरह का असंवेदनशील फैसला सुनाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम आमतौर पर इस स्तर पर स्थगन देने में हिचकिचाते हैं, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले में किए गए कुछ टिप्पणियां न केवल कानूनी सिद्धांतों से परे हैं, बल्कि एक अमानवीय दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं।” कोर्ट ने विशेष रूप से फैसले के पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियों पर रोक लगा दी।
केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से मांगा जवाब
शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। इसके अलावा, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी इस मुद्दे पर सहायता मांगी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट के समक्ष पक्षकारों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट के फैसले में क्या कहा गया था?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़ित बच्ची के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार के प्रयास के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट का कहना था कि ये कृत्य केवल ‘तैयारी’ की श्रेणी में आते हैं, न कि अपराध के वास्तविक प्रयास में।
सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप के बाद अब पूरे देश की नजर इस मामले पर है, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस पर केंद्र और राज्य सरकारें क्या प्रतिक्रिया देती हैं।