
गुड़गांव और एनसीआर में सबवेंशन योजना के तहत होमबायर्स की शिकायतों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए बिल्डर-बैंक गठजोड़ की सीबीआई जांच का प्रस्ताव दिया है। यह योजना जो होमबायर्स के लिए फायदेमंद मानी जा रही थी, अब उनके लिए मुसीबत बन गई है।
कैसे काम करता है सबवेंशन स्कीम?
इस योजना के तहत बैंक एक प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए बिल्डर को लोन मंजूर करता है, जबकि होमबायर फ्लैट खरीदने के लिए लोन अप्लाई करता है। इस लोन की रकम बैंक सीधे बिल्डर के खाते में ट्रांसफर कर देता है। बदले में, बिल्डर को तब तक होमबायर्स की ईएमआई चुकानी होती है, जब तक उन्हें फ्लैट का पजेशन नहीं मिल जाता। इस प्रक्रिया के कारण होमबायर्स को निर्माण के दौरान ईएमआई भरने की जरूरत नहीं पड़ती।
मुसीबत कहां से शुरू होती है?
समस्या तब खड़ी होती है जब बिल्डर प्रोजेक्ट में देरी करता है या ईएमआई भुगतान में असमर्थ हो जाता है। ऐसी स्थिति में बैंक होमबायर्स पर ईएमआई चुकाने का दबाव डालने लगता है, जबकि उन्हें अब तक फ्लैट का कब्जा भी नहीं मिला होता। इससे होमबायर्स को दोहरी आर्थिक मार झेलनी पड़ती है—एक तरफ किराया देना पड़ता है, दूसरी ओर बिना पजेशन वाले फ्लैट के लिए ईएमआई चुकानी पड़ती है।
बिल्डर-बैंक गठजोड़ पर गंभीर सवाल
यह पूरा सिस्टम होमबायर्स के शोषण की ओर इशारा करता है, जहां बिल्डर प्रोजेक्ट में देरी करने के बावजूद कोई जवाबदेही नहीं लेता और बैंक उनसे जबरन ईएमआई वसूलने लगते हैं। इससे बिल्डरों को तो फायदा होता है, लेकिन होमबायर्स का नुकसान हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया सीबीआई जांच का प्रस्ताव
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बिल्डर-बैंक गठजोड़ की सीबीआई जांच का प्रस्ताव रखा है, ताकि उन बैंकों और बिल्डरों को जवाबदेह ठहराया जा सके, जो इस प्रक्रिया के तहत होमबायर्स को फंसा रहे हैं। अदालत इस बात की जांच कर रही है कि आखिर कैसे होमबायर्स को बिल्डरों के लोन की मंजूरी के लिए सिर्फ एक माध्यम बना दिया गया है।
रियल एस्टेट सेक्टर के लिए जरूरी सुधार
यह समस्या सिर्फ होमबायर्स तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर को प्रभावित कर रही है, खासकर गुड़गांव और एनसीआर जैसे बड़े शहरों में। इस तरह के मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है, ताकि उपभोक्ताओं को न्याय मिले और बाजार में विश्वास बना रहे।