
लेह, लद्दाख: तिब्बती कैलेंडर के अनुसार, नववर्ष का प्रतीक लोसर उत्सव आज से पूरे लद्दाख में बड़े हर्षोल्लास के साथ शुरू हो गया है। यह पर्व न केवल क्षेत्र की संस्कृति और विरासत को समेटे हुए है, बल्कि आपसी भाईचारे और एकता का भी प्रतीक है। इस वर्ष लोसर उत्सव को क्रिसमस और नववर्ष के साथ जोड़ते हुए LAHDC लेह और संस्कृति अकादमी द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए।
लोसर उत्सव में सांस्कृतिक झलक:
20 दिसंबर से 31 दिसंबर तक लेह बाजार में आयोजित गतिविधियों की श्रृंखला में सांस्कृतिक प्रदर्शन, पारंपरिक गीत-संगीत और बाजार प्रचार शामिल रहा। इन कार्यक्रमों ने स्थानीय निवासियों और पर्यटकों दोनों को एक समावेशी और आनंदमय माहौल का अनुभव कराया।
संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने का प्रयास:
लद्दाख कला, संस्कृति और भाषा अकादमी के उप सचिव त्सावांग पलजोर ने इस आयोजन की विशेषता बताते हुए कहा कि सदियों पुरानी परंपराओं को आधुनिक समय के साथ अनुकूलित करना जरूरी है। उनका कहना है कि इन रीति-रिवाजों को सार्वजनिक मंच पर लाने का उद्देश्य उन लोगों तक पहुंचाना है, जो दूरदराज के इलाकों में रहते हैं और इन्हें देखने का अवसर नहीं पा सकते।
उन्होंने बताया, “यह प्रयास ग्रामीणों को प्रेरित करने के साथ-साथ पर्यटकों को लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाने का भी माध्यम है।” पलजोर ने जोर देकर कहा कि परंपराओं का संरक्षण जरूरी है, लेकिन उनके साथ समय के अनुसार बदलाव भी होना चाहिए।
लोसर उत्सव का महत्व:
लोसर केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक बहुआयामी पर्व है, जिसका उद्देश्य एकता, शांति, सद्भाव और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना है। लोसर के दौरान घरों की सफाई, मक्खन के दीये जलाने, प्रार्थनाएं करने और पारंपरिक व्यंजन तैयार करने जैसे कार्य किए जाते हैं। यह रीति-रिवाज अज्ञानता और घृणा को मिटाने और ज्ञान व प्रेम का प्रतीक है।
परंपराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण:
संस्कृति अकादमी और LAHDC द्वारा लद्दाख के 133 गांवों की संस्कृति को डॉक्यूमेंट करने की पहल की जा रही है। पलजोर ने बताया, “हमारी यह कोशिश सुनिश्चित करती है कि आने वाली पीढ़ियां हमारी समृद्ध विरासत को समझें और इसे संरक्षित करें।”
आधुनिकता और परंपराओं के बीच संतुलन:
पलजोर ने स्वीकार किया कि परंपराओं में बदलाव जरूरी है, लेकिन इसे सावधानी और समझदारी के साथ अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारे पूर्वजों ने जो परंपराएं बनाई हैं, वे हमारी धरोहर हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए।”
लोसर उत्सव अगले कुछ दिनों तक जारी रहेगा, जहां हर दिन नए रीति-रिवाज और सांस्कृतिक गतिविधियां देखने को मिलेंगी। यह उत्सव न केवल लद्दाख के लोगों को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है, बल्कि दुनियाभर से आए पर्यटकों को इसकी समृद्ध संस्कृति की झलक दिखाने का अनूठा अवसर भी प्रदान करता है।