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भारत छोड़ने वालों की बढ़ती तादाद: जब सपनों का देश उम्मीदों को खो देता है

The rising number of people leaving India: When the country of dreams loses hope

नई दिल्ली, अप्रैल 2025: भारत, जहां 1.4 अरब से अधिक लोग एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन की उम्मीद लिए जी रहे हैं, वहां आज भी नागरिकों की मूलभूत समस्याएं अनदेखी बनी हुई हैं। लोग न तो धर्म के नाम पर लड़ना चाहते हैं, न ही सड़क पर बेवजह जान गंवाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए, उनके मुद्दों को प्राथमिकता मिले, लेकिन असलियत कुछ और ही है।

देश में सड़कों की हालत चिंताजनक है, वायु प्रदूषण शहरों को दमघोंटू बना रहा है, शिक्षा प्रणाली पिछड़ी हुई है, और टैक्स के बोझ से आम आदमी कराह रहा है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि जब कोई नागरिक इन मुद्दों पर सवाल उठाता है, तो उसे ‘देशद्रोही’ कह दिया जाता है।

भारत छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या

इन हालातों से तंग आकर हर साल लाखों भारतीय नागरिक देश छोड़ रहे हैं।

  • 2021 में 1.63 लाख लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी।
  • 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 2.25 लाख हो गया, जो अब तक का सबसे अधिक है।
  • 2023 में 2.16 लाख और
  • 2024 में 2.06 लाख लोगों ने भारतीय पासपोर्ट को अलविदा कह दिया।

ये केवल आँकड़े नहीं हैं, ये वो लोग हैं जिन्होंने कभी भारत को अपना भविष्य माना था, लेकिन अब निराश होकर दूसरी जगहों पर नई शुरुआत करने को मजबूर हो गए।

कौन हैं ये लोग?

ये कोई साधारण लोग नहीं, बल्कि देश के सबसे होनहार नागरिक हैं—उद्यमी, पेशेवर, नवोन्मेषी, जो भारत को वैश्विक स्तर पर आगे ले जा सकते थे। लेकिन उन्हें लगा कि उनकी बातों को कोई नहीं सुनता, उनकी परेशानियों का कोई समाधान नहीं निकलता।

क्यों हो रही है ये स्थिति?

सरकार की प्राथमिकता असली मुद्दों से हटकर भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और ध्रुवीकरण की राजनीति में उलझ गई है। जब लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो उनमें यह भरोसा खत्म हो जाता है कि भारत में उनके सपने पूरे हो सकते हैं।

क्या यह समाधान है?

देश छोड़ देना समस्या का समाधान नहीं है। किसी भी देश में बदलाव तब आता है जब उसके नागरिक साथ मिलकर उसके लिए लड़ते हैं। जरूरी है कि हम एक-दूसरे से नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों से लड़ें। नेताओं से जवाब मांगें, सच्चाई के लिए आवाज उठाएं और टूटी व्यवस्था को सुधारने की कोशिश करें।

भारत को बेहतर बनाना है, तो हमें भागना नहीं, ठहरकर लड़ना होगा। बदलाव तभी आएगा, जब हर नागरिक कहे—“ये देश मेरा है, और मैं इसे छोड़ूंगा नहीं, बदलूंगा!”

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