
नई दिल्ली: भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP per capita) लगभग 2800 अमेरिकी डॉलर यानी करीब 2.4 लाख रुपये है, जो विश्व स्तर पर औसत से कहीं कम है। इस आर्थिक असमानता के चलते बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक बेहतर जीवन स्तर और अवसरों की तलाश में विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि कम GDP प्रति व्यक्ति सीधे तौर पर नागरिकों की आय, जीवनशैली और बुनियादी सुविधाओं पर प्रभाव डालता है। भारत की बड़ी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के पास या नीचे जीवन यापन कर रही है, जबकि शिक्षा और कौशल विकास के अवसर सीमित हैं। ऐसे में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और यूएई जैसे विकसित या उच्च मध्यम आय वाले देशों में पलायन एक आशा की किरण बनकर उभरता है।
क्यों चाहते हैं भारतीय विदेश जाना?
अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में प्रति व्यक्ति आय क्रमशः 80,000 डॉलर और 60,000 डॉलर के करीब है। इन देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढांचे और सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं कहीं अधिक विकसित हैं। इसके अलावा, भारतीय आईटी पेशेवरों, छात्रों और कुशल श्रमिकों को विदेशों में अधिक वेतन, स्थायित्व और सम्मान की उम्मीद होती है।
यूएई जैसे खाड़ी देशों में भी लाखों भारतीय श्रमिक काम कर रहे हैं, जहां उन्हें घरेलू आय की तुलना में कहीं बेहतर मजदूरी मिलती है। यही वजह है कि हर साल हजारों भारतीय H-1B वीजा, स्टूडेंट वीजा या वर्क परमिट के जरिए विदेशों का रुख करते हैं।
सरकार की चुनौतियां और समाधान
भारत सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं के जरिए देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन जमीनी स्तर पर परिणाम अभी सीमित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक शिक्षा प्रणाली में सुधार, कौशल विकास और रोजगार सृजन को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तब तक “ब्रेन ड्रेन” की यह समस्या बनी रहेगी।
कम GDP प्रति व्यक्ति भारत की एक बड़ी सामाजिक-आर्थिक चुनौती है, जो न केवल नागरिकों के जीवन स्तर को प्रभावित कर रही है, बल्कि देश की प्रतिभा को भी विदेशों की ओर धकेल रही है। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर इस प्रवृत्ति को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।