
मार्च के अंतिम छह कारोबारी सत्रों में 31,000 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश
मुंबई: भारतीय इक्विटी बाजार में मार्च के अंतिम छह कारोबारी सत्रों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे कुल एफपीआई प्रवाह 31,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। डिपॉजिटरी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, इस निवेश वृद्धि ने महीने के कुल एफपीआई बहिर्वाह को घटाकर मात्र 3,973 करोड़ रुपये कर दिया।
बाजार में सुधार और एफपीआई की वापसी
फरवरी में 34,574 करोड़ रुपये और जनवरी में 78,027 करोड़ रुपये की भारी निकासी के बाद, एफपीआई का यह पुनरागमन एक बड़ा बदलाव दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले साल सितंबर से बाजार में 16% सुधार के चलते भारतीय शेयरों की आकर्षक वैल्यूएशन ने विदेशी निवेशकों को वापस खींचा है। इसके अलावा, भारतीय रुपये की मजबूती, मजबूत GDP ग्रोथ, और खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी जैसे सकारात्मक आर्थिक संकेतकों ने भी विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है।
निफ्टी में 6% की बढ़त, बाजार में नई तेजी
एफपीआई निवेश के इस उछाल का सीधा असर बेंचमार्क निफ्टी सूचकांक पर पड़ा, जो लगभग 6% तक उछल गया। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा नए नियामक सुधारों, जैसे कि पी-नोट्स के लिए स्वामित्व सीमा बढ़ाने के फैसले को विदेशी निवेशकों ने सकारात्मक रूप से लिया है।
एफपीआई प्रवाह से शीर्ष कंपनियों का मार्केट कैप बढ़ा
बीते सप्ताह शीर्ष 10 कंपनियों में से 8 के बाजार पूंजीकरण में वृद्धि हुई, जिससे कुल 88,085.89 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ। एचडीएफसी बैंक सबसे बड़ा लाभार्थी रहा, जिसका मूल्यांकन 44,933.62 करोड़ रुपये बढ़कर 13,99,208.73 करोड़ रुपये हो गया। इसके अलावा, भारतीय स्टेट बैंक, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), और आईसीआईसीआई बैंक ने भी महत्वपूर्ण बढ़त दर्ज की। दूसरी ओर, रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंफोसिस को नुकसान उठाना पड़ा।
भविष्य की दिशा 2 अप्रैल को तय होगी
विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय बाजार में एफपीआई निवेश की भविष्य की दिशा 2 अप्रैल को ट्रंप प्रशासन द्वारा संभावित टैरिफ निर्णय पर निर्भर करेगी। यदि शुल्क अधिक नहीं बढ़ते, तो भारतीय बाजार में तेजी जारी रह सकती है। साथ ही, सितंबर 2024 में लागू होने वाले SEBI के नए धन प्रेषण नियमों का भी एफपीआई निवेश पर प्रभाव पड़ सकता है।
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश की वापसी आर्थिक स्थिरता और निवेशकों के बढ़ते भरोसे का संकेत है। हालांकि, वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम और नीतिगत फैसले भविष्य के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं।