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हिंदी पर टीएमसी सांसद का बयान: ‘हमारी राष्ट्रीय भाषा का सम्मान जरूरी’

TMC MP's statement on Hindi: 'Respect for our national language is important'

कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और सबको इसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने हिंदी को महान भाषा बताते हुए इसे देश की मातृभाषा करार दिया। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही हैं

बंगाल में हिंदी को लेकर क्या बोले सुदीप बंद्योपाध्याय?

टीएमसी सांसद ने कहा कि ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में हिंदी एकेडमी स्थापित की है और अब माध्यमिक स्तर पर हिंदी स्कूलों में प्रश्न पत्र भी छपने लगे हैं। इसके अलावा, टीएमसी का अपना एक हिंदी सेल भी है, जो इस भाषा को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

उन्होंने कहा, “क्षेत्रीय पार्टियां आमतौर पर अपनी क्षेत्रीय भाषाओं का समर्थन करती हैं। पश्चिम बंगाल में बंगाली, गुजराती और उर्दू बोलने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। यहां हर भाषा और संस्कृति का सम्मान किया जाता है, और हिंदी भी इससे अलग नहीं है।”

तमिलनाडु सरकार पहले ही कर चुकी है विरोध

थ्री लैंग्वेज पॉलिसी पर तमिलनाडु सरकार पहले ही विरोध दर्ज करा चुकी है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे हिंदी थोपने की कोशिश करार देते हुए कहा था, “तमिलनाडु स्वायत्तता की मांग करता है और दो-भाषा नीति को बरकरार रखता है। हिंदी थोपने का विरोध किया जाएगा।”

फर्जी मतदाता सूची को लेकर टीएमसी की चिंता

इस बीच, टीएमसी सांसद ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी के मुद्दे को भी उठाया। उन्होंने कहा कि टीएमसी इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली और महाराष्ट्र के पिछले चुनावों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई थी

‘औरंगजेब के मुद्दे पर ध्यान नहीं’

सांसद ने यह भी कहा कि पार्टी औरंगजेब के मुद्दे पर ध्यान नहीं देती। उन्होंने कहा, “हम इस पर ध्यान नहीं देते कि औरंगजेब कहां से आते हैं। हमारा ध्यान जनता के असली मुद्दों पर है।”

बंगाल में हिंदी को लेकर नया नजरिया?

टीएमसी के इस बयान से यह साफ है कि पार्टी हिंदी भाषा को बढ़ावा देने और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ संतुलन बनाए रखने की रणनीति अपना रही है। वहीं, तमिलनाडु जैसे राज्यों में अभी भी हिंदी को लेकर विरोध की स्थिति बनी हुई है।

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