
भोजपुर: बिहार का हर जिला अपनी खासियत के लिए जाना जाता है, और भोजपुर जिले का सकड्डी गांव अपने लाजवाब पेड़े के लिए मशहूर है। अगर आप पटना से भोजपुर, बक्सर या सासाराम की यात्रा कर रहे हैं और सकड्डी के पेड़े का स्वाद नहीं लिया, तो आप एक खास मिठास से वंचित रह गए।
सकड्डी में रुकती हैं गाड़ियां, पेड़े का अनोखा स्वाद हर किसी को लुभाता
आरा-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित सकड्डी में पहुंचते ही वाहनों की रफ्तार धीमी हो जाती है। लक्जरी कारों से लेकर बसों तक, हर यात्री इस खास मिठाई को चखने के लिए यहां रुकता है। शुद्ध दूध से बने सकड्डी के पेड़े की मांग बिहार ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों और विदेशों तक भी है।
40 साल पुरानी परंपरा, आज भी कायम है मिठास
सकड्डी में पेड़े की पहचान 1986 में शुरू हुई तिरंगा जी की दुकान से हुई थी। उनके बाद इस व्यवसाय को संतोष ने संभाला, और धीरे-धीरे यहां कई दुकानें खुल गईं। दुकानदार रंजीत कुमार के अनुसार, उनकी दुकान पर रोजाना 4-5 क्विंटल दूध से पेड़े तैयार होते हैं।
10 क्विंटल पेड़ा रोजाना तैयार, शादी-ब्याह में भी बढ़ी मांग
सकड्डी में रोजाना करीब 10 क्विंटल पेड़ा तैयार होता है, जिसके लिए बिंदगांवा और मनेर से शुद्ध गाय और भैंस का दूध मंगाया जाता है। लकड़ी और कोयले की भट्ठियों पर सैकड़ों लीटर दूध घंटों पकाया जाता है, जिससे एक किलो शुद्ध पेड़ा बनाने में लगभग 5 किलो दूध का इस्तेमाल होता है।
1 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार, बिहार की पहचान बना सकड्डी का पेड़ा
सकड्डी के पेड़ा कारोबार का वार्षिक आंकड़ा 1 करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है। दुकानदारों के मुताबिक, यहां रोजाना 3 लाख रुपये तक की बिक्री होती है। 1 किलो पेड़े की कीमत 400 रुपये है, और शादी-ब्याह या त्योहारों में इसकी मांग और बढ़ जाती है।
अगर बिहार जाएं तो सकड्डी का पेड़ा जरूर चखें!
ग्राहक राकेश शर्मा बताते हैं कि आरा-पटना हाईवे पर सफर करने वाले हजारों लोग यहां का पेड़ा खरीदते हैं। अगर आप भी इस रास्ते से गुजरें, तो सकड्डी के इस मशहूर पेड़े का स्वाद लेना न भूलें!