
नुआपड़ा: ओडिशा के नुआपड़ा जिले का मंडियारुचा गांव, जो पहाड़ों और जंगलों से घिरा है, कभी रोजगार के सीमित अवसरों के कारण महिला पलायन का केंद्र हुआ करता था। इस गांव की महिलाएं आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे दूरस्थ राज्यों में मजदूरी के लिए जाती थीं, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
गांव की 10 साहसी महिलाओं ने मिलकर “मां मंगला स्वयं सहायता समूह (SHG)” का गठन किया और स्वरोजगार की राह अपनाई। पहले ईंट निर्माण, फिर गर्भवती महिलाओं के लिए पौष्टिक आहार बनाने का काम शुरू कर, इन महिलाओं ने आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल की और पूरे गांव के लिए प्रेरणा बनीं।
“मां मंगला स्वयं सहायता समूह” की शुरुआत
- 2009: 20 महिलाओं ने मिलकर यह समूह बनाया और हर महीने 10 रुपये बैंक में जमा करने लगीं।
- 2010-11: 1 एकड़ जमीन पर पौधे लगाए और बाद में जिला प्रशासन की सहायता से सेनेका कार्यक्रम से जुड़ गईं, जिससे हर महीने 35 हजार रुपये की कमाई होने लगी।
- 2012-15: इन 10 महिलाओं ने ईंट बनाने का व्यवसाय शुरू किया, जिससे सालाना 50 हजार रुपये की आमदनी हुई।
पौष्टिक आहार से पोषण क्रांति की ओर कदम
- 2015-16: जिला प्रशासन ने आंगनबाड़ियों और गर्भवती महिलाओं को पोषण देने की जिम्मेदारी इस समूह को सौंपी।
- 26 लाख रुपये का लोन लेकर चटुआ (सत्तू पाउडर), बादाम और मुरमुरा लड्डू बनाने के लिए मशीन खरीदी गई।
- आज, सिनापाली ब्लॉक की 6 ग्राम पंचायतों के 18 गांवों में आंगनबाड़ियों के जरिए पोषक आहार का वितरण किया जा रहा है।
- पिछले 16 वर्षों से सक्रिय यह समूह अब गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की आपूर्ति कर रहा है।
सफलता की कहानी: एक मिसाल
समूह की सदस्य द्रोपदी साहू बताती हैं,
“हमने दो साल तक अपनी पासबुक में सिर्फ 10 रुपये जमा किए। फिर पैसे जुटाकर व्यवसाय शुरू किया। पहले ईंटें बनाईं, फिर पेड़ लगाए और अब हम 18 पंचायतों में गर्भवती महिलाओं के लिए चटुआ और लड्डू बना रहे हैं। हमें खुशी है कि हम अपने गांव की महिलाओं की मदद कर पा रहे हैं।”
महिला सशक्तिकरण की नई मिसाल
मंडियारुचा की इन महिलाओं ने न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारा, बल्कि गांव के पोषण स्तर को भी बेहतर बनाया। इनका सामूहिक प्रयास और दृढ़ संकल्प आज कई अन्य गांवों के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल बन चुका है।
यह कहानी दिखाती है कि अगर महिलाएं संगठित होकर आगे बढ़ें, तो वे अपनी तकदीर खुद बदल सकती हैं!