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Hyderabad train accident: ‘कवच’ सुरक्षा तकनीक के कार्यान्वयन पर उठे सवाल, क्या यह दुर्घटना को रोक सकती थी?

Questions raised on implementation of 'Kavach' safety technology, could it have prevented the accident?

हैदराबाद के पास तिरुवल्लूर जिले में शुक्रवार रात एक बड़ा रेल हादसा हुआ, जब मैसूर से दरभंगा जा रही बागमती एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा गई। इस हादसे में सैकड़ों यात्रियों की जान जोखिम में पड़ गई। घटना के बाद, रेलवे की सुरक्षा तकनीक ‘कवच’ पर सवाल उठने लगे हैं, जो ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है।

क्या है ‘कवच’ तकनीक?

‘कवच’ एक उन्नत ट्रेन सुरक्षा प्रणाली (ATP) है, जो ट्रेन टकराव, ओवरस्पीडिंग और सिग्नल विफलता जैसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए बनाई गई है। यह तकनीक ट्रेन के सिग्नल और गति की निगरानी करती है और यदि लोको पायलट गलती करता है, तो कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है।

कवच के उपकरणों में शामिल हैं:

लोको शील्ड: ट्रेन इंजन में स्थापित कंप्यूटर सिस्टम।
स्टेशन शील्ड: रेलवे स्टेशन में स्थित सुरक्षा प्रणाली।
RFID टैग: ट्रेन के नियमित अंतराल पर लगाए गए पहचान उपकरण।
जीपीएस सिस्टम: ट्रेन के सटीक स्थान का पता लगाने के लिए।

क्या इस हादसे को ‘कवच’ से रोका जा सकता था?

हालांकि दुर्घटना के वास्तविक कारणों की जांच अभी चल रही है, परन्तु ‘कवच’ तकनीक कई तरह की दुर्घटनाओं को रोकने में सक्षम है, जैसे कि सिग्नल ओवररन, ओवरस्पीडिंग, और आमने-सामने की टक्कर। यह प्रणाली ट्रेन के गलत ट्रैक पर जाने या आपात स्थिति में ब्रेक लगाने की स्वचालित क्षमता रखती है।

कवच का सीमित कार्यान्वयन

अब तक दक्षिण मध्य रेलवे के 1,445 किलोमीटर में यह प्रणाली लागू की जा चुकी है, जबकि भारत के 68,000 किलोमीटर लंबे नेटवर्क के लिए यह केवल एक छोटा हिस्सा है। सरकार की योजना इसे अगले पांच वर्षों में 44,000 किलोमीटर तक विस्तारित करने की है।

भविष्य की चुनौतियां और योजनाएं
कवच तकनीक के पूर्ण कार्यान्वयन में प्रति किलोमीटर लगभग 50 लाख रुपये की लागत आएगी, और यह कार्य विभिन्न चरणों में पूरा किया जाएगा। हाल की दुर्घटना ने ‘कवच’ के तेजी से कार्यान्वयन की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट कर दिया है।

भारतीय रेलवे का लक्ष्य इसे दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा जैसे प्रमुख मार्गों पर प्राथमिकता के साथ लागू करना है ताकि सुरक्षा और गति में सुधार हो सके।

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