
देहरादून: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति इस बात से मापी जाती है कि वहां दिव्यांगजनों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा करुणा और समावेशिता पर आधारित रही है, और दिव्यांगजनों को समान अवसर देना हमारे समाज की जिम्मेदारी है। वह शुक्रवार को देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुई थीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए समावेशी शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसर बेहद ज़रूरी हैं। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसमें दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं ताकि वे भी अन्य विद्यार्थियों की तरह समान रूप से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
‘सुगम्य भारत अभियान’ का ज़िक्र
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘सुगम्य भारत अभियान’ के अंतर्गत दिव्यांगजनों के लिए सुलभ परिवेश, आवासीय ढांचे, यातायात और सूचना तंत्र को सुविधाजनक बनाया जा रहा है, ताकि वे बिना किसी बाधा के समाज की मुख्यधारा में भाग ले सकें।
उन्होंने बताया कि आधुनिक तकनीक और नवाचार की मदद से दृष्टिबाधित छात्र गणित और विज्ञान जैसे विषयों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, और यह न केवल उनकी क्षमता का प्रमाण है, बल्कि समाज की सोच में आए बदलाव का भी परिचायक है।
विज्ञान व कंप्यूटर प्रयोगशाला का निरीक्षण
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ने संस्थान में स्थापित विज्ञान व कंप्यूटर प्रयोगशालाओं का निरीक्षण किया और छात्रों से संवाद भी किया। उन्होंने छात्रों की पढ़ाई और प्रशिक्षण में रुचि लेते हुए उनकी प्रगति पर संतोष व्यक्त किया। राष्ट्रपति ने विशेष रूप से ‘पर्पल फेस्ट’ का उल्लेख किया, जिसमें दिव्यांग प्रतिभाओं ने अपनी रचनात्मकता का शानदार प्रदर्शन किया।
राष्ट्रपति भवन परिसर में दिव्यांगजनों द्वारा संचालित कैफे का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अवसर मिलने पर दिव्यांगजन समाज में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकते हैं।
जन्मदिन बच्चों के साथ मनाकर दिया प्रेरणा का संदेश
कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने बताया कि राष्ट्रपति ने अपनी जन्मतिथि के दिन दृष्टिबाधित बच्चों के बीच समय बिताकर समाज को प्रेरणादायक संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रयास बच्चों में आत्मविश्वास और ऊर्जा का संचार करते हैं।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अब संस्थान में विज्ञान वर्ग के छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। पहले जहां विज्ञान विषयों में दाखिला लेने वाले बच्चे नगण्य थे, अब उनके संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
राज्य सरकार की प्रतिबद्धता
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संबोधन में कहा कि दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा, “हम दृष्टिबाधित बच्चों की आंखों की रोशनी तो नहीं लौटा सकते, लेकिन उनके सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द को बढ़ावा देने की पहल को सामाजिक सोच में सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बताया।
संकल्प में है शक्ति: राज्यपाल
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने दृष्टिबाधित बच्चों के आत्मबल की सराहना करते हुए कहा कि ये बच्चे इस बात का प्रमाण हैं कि सक्षम होना केवल देखने की शक्ति में नहीं, बल्कि संकल्प और समर्पण में निहित है। उन्होंने कहा कि इन छात्रों ने अपनी सृजनशीलता, आत्मविश्वास और कौशल से राष्ट्र निर्माण की दिशा में नई ऊर्जा भरी है।
राज्यपाल ने सभी छात्रों से राष्ट्र सेवा को प्राथमिकता देने और ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मंत्र को जीवन में अपनाने का आह्वान किया।
निष्कर्ष:
राष्ट्रपति का यह दौरा न केवल दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि जब समाज समावेशिता की भावना से आगे बढ़ता है, तो हर वर्ग को सम्मान और अवसर मिल सकता है।