राजनीतिविदेश

वॉशिंगटन की वार्ता यूक्रेन के भविष्य के लिए ट्रंप-पुतिन शिखर सम्मेलन से अधिक अहम साबित हो सकती है

"वॉशिंगटन में होने वाली उच्च स्तरीय वार्ता यूरोप की सुरक्षा और यूक्रेन की संप्रभुता के लिए निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है"

वॉशिंगटन में सोमवार को होने वाली बैठक यूक्रेन के भविष्य और यूरोप की सुरक्षा के लिए उतनी ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक महत्वपूर्ण मानी जा रही है जितनी कि पिछले हफ्ते अलास्का में हुए अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन।

पेरिस में मार्च महीने में “कोएलिशन ऑफ द विलिंग” की बैठक में वलोडिमिर ज़ेलेंस्की, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर ने भाग लिया था। अब वही नेतृत्व वॉशिंगटन में डोनाल्ड ट्रंप से सीधे संदेश देना चाहता है कि —

  1. यूक्रेन के बिना कोई शांति समझौता संभव नहीं।

  2. समझौते को लोहे जैसे सुरक्षा गारंटी के साथ ही लागू किया जा सकता है।

ट्रंप-पुतिन वार्ता और यूरोप की चिंता

पिछली ट्रंप-पुतिन बैठक से न तो युद्धविराम हुआ, न ही प्रतिबंध हटे और न ही कोई बड़ा ऐलान। यूरोप को डर है कि कहीं दोनों परमाणु महाशक्तियाँ मिलकर पर्दे के पीछे कोई ऐसा सौदा न कर लें जिससे यूक्रेन और यूरोप हाशिये पर चले जाएँ।

यही वजह है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मनी के चांसलर मेर्ज़, नाटो महासचिव मार्क रुटे और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों वॉशिंगटन पहुंचे हैं।

यूक्रेन का रुख: भूमि नहीं छोड़ेंगे

राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की स्पष्ट कर चुके हैं कि यूक्रेन किसी भी परिस्थिति में अपनी भूमि नहीं छोड़ेगा। उनका कहना है कि यूक्रेन का संविधान भी इसे अनुमति नहीं देता।

लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन डोनबास पर नियंत्रण बनाए रखने और क्राइमिया को किसी भी कीमत पर वापस न करने के मूड में हैं।

क्या सुरक्षा गारंटी समाधान हो सकती है?

यूरोपीय संघ की शीर्ष राजनयिक काया कैलास ने कहा था कि यूक्रेन की जीत का मतलब सिर्फ कब्जाई हुई भूमि वापस पाना नहीं है। यदि उसे नाटो के आर्टिकल-5 जैसी ठोस सुरक्षा गारंटी मिल जाए जिससे रूस दोबारा आक्रमण न कर सके, तो यह भी जीत का ही एक रूप होगा।

सबसे बड़ा सवाल: क्या यह सौदा टिकेगा?

चर्चा है कि अमेरिका और रूस ऐसा समझौता कर सकते हैं जिसमें यूक्रेन को कुछ भूमि छोड़नी पड़े लेकिन उसके बदले उसे सुरक्षा गारंटी मिले कि रूस और आगे कब्ज़ा नहीं करेगा।

परन्तु सवाल यह है कि —

  • क्या यूक्रेन इतना बड़ा बलिदान स्वीकार करेगा जबकि हजारों लोग उस भूमि की रक्षा में शहीद हुए हैं?

  • क्या डोनेट्स्क का शेष 30% हिस्सा छोड़ना कीव तक का रास्ता खुला छोड़ देगा?

  • और यदि युद्ध रुक भी गया तो क्या पुतिन अपनी सेना को फिर से नहीं खड़ा करेंगे और तीन-चार साल में फिर से हमला नहीं करेंगे?

निष्कर्ष

वॉशिंगटन की यह वार्ता सिर्फ यूक्रेन ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप की सुरक्षा के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। यदि ठोस सुरक्षा गारंटी पर सहमति बन जाती है तो यह रूस की विस्तारवादी नीति पर रोक लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button