
नई दिल्ली/जम्मू-कश्मीर:
जहां कभी केवल खच्चरों और घोड़ों की टापें सुनाई देती थीं, आज वहां स्टील का एक अद्भुत नमूना खड़ा है—दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल, चिनाब ब्रिज। यह केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं, बल्कि भारत के अदम्य संकल्प और अथक मेहनत की मिसाल है।
रास्ता नहीं था, हौसला था
चिनाब ब्रिज के निर्माण का सफर आसान नहीं था। जिस क्षेत्र में यह पुल बना, वहां कोई पक्की सड़क या यातायात का साधन नहीं था। केवल पहाड़ी पगडंडियां थीं, जिनसे गुजरना भी एक चुनौती थी। ऐसे में शुरुआत में निर्माण सामग्री, उपकरण और यहां तक कि इंजीनियरों को भी साइट तक पहुंचाने के लिए घोड़ों और खच्चरों का सहारा लिया गया।
अस्थायी से स्थायी तक का सफर
परियोजना से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, पहले अस्थायी रास्ते बनाए गए ताकि श्रमिक और संसाधन सुरक्षित रूप से ऊपर तक पहुंच सकें। बाद में इन्हीं अस्थायी रास्तों को स्थायी सड़कों में बदल दिया गया। चिनाब नदी के दोनों किनारों पर कुल 23 किलोमीटर की सड़क खुदी—उत्तर में 11 और दक्षिण में 12 किलोमीटर।
तकनीक और परंपरा का संगम
अफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, जो इस परियोजना की प्रमुख निर्माण कंपनी रही, ने पहली बार भारत में रेलवे निर्माण में इन्क्रिमेंटल लॉन्चिंग तकनीक का उपयोग किया। खास बात यह रही कि यह तकनीक ट्रांजिशन कर्व और लॉन्गिट्यूडिनल ग्रेडिएंट के साथ एकसाथ इस्तेमाल की गई—जो अब तक असंभव माना जाता था।
एक सपना जो देश को जोड़ता है
चिनाब ब्रिज न केवल तकनीकी दृष्टि से एक मील का पत्थर है, बल्कि यह भारत को कश्मीर से कन्याकुमारी तक जोड़ने के स्वप्न की दिशा में एक निर्णायक कदम भी है। यह पुल 360 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है—जो एफिल टावर से भी ऊंचा है।
निष्कर्ष:
चिनाब ब्रिज केवल स्टील, सीमेंट और बोल्ट का ढांचा नहीं है, बल्कि यह उस जज्बे का प्रतीक है जिसने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। यह पुल आने वाली पीढ़ियों को बताएगा कि जब इरादा मजबूत हो, तो पहाड़ भी झुक जाते हैं।