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डॉ. सुमिता प्रभाकर को मिला प्रतिष्ठित RCOG फेलोशिप सम्मान, बनीं भारत की पहली महिला डॉक्टर

Dr. Sumita Prabhakar received the prestigious RCOG Fellowship award, became India's first female doctor

उत्तराखंड की मशहूर स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमिता प्रभाकर को लंदन स्थित रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स (RCOG) ने अपनी फेलोशिप से सम्मानित किया है। यह फेलोशिप उन्हें मस्कट, ओमान में 14 से 16 अक्टूबर 2024 के दौरान आयोजित RCOG-2024 सम्मेलन में प्रदान की गई। इस सम्मान के साथ, डॉ. सुमिता भारत की पहली ऐसी महिला डॉक्टर बनीं, जिन्हें इस प्रतिष्ठित फेलोशिप से नवाजा गया है।

डॉ. सुमिता पिछले 25 वर्षों से महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। उनकी विशेषज्ञता में स्त्री रोग संबंधी सर्जरी, हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी और बांझपन का इलाज शामिल है। उन्होंने मेडिकल फील्ड में आधुनिक तकनीकों और नवाचारों को बढ़ावा देकर अपनी सेवाओं को और बेहतर बनाया है, जिससे मरीजों को बड़ा फायदा हुआ है।

क्या है RCOG फेलोशिप?

फ़ेलो ऑफ़ द रॉयल कॉलेज ऑफ़ ऑब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स (FRCOG) एक ऐसा सम्मान है, जो प्रसूति और स्त्री रोग में उत्कृष्टता के लिए प्रदान किया जाता है। इसे पाने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 10 वर्षों तक RCOG का सदस्य रहना आवश्यक होता है। यह सम्मान उन चिकित्सकों को दिया जाता है, जिन्होंने शिक्षा, शोध और चिकित्सकीय सेवाओं में विशेष योगदान दिया हो। डॉ. सुमिता की चिकित्सा सेवाओं को इसी मापदंड के तहत सम्मानित किया गया।

डॉ. सुमिता प्रभाकर का चिकित्सा सफर

डॉ. सुमिता का जन्म और प्रारंभिक शिक्षा ऋषिकेश, उत्तराखंड में हुई। उन्होंने 1994 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की और 1996 में एमडी (ऑब्स एंड गायनी) की। इसके बाद, 1998 में उन्होंने लंदन स्थित रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स से एमआरसीओजी की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मलेशिया के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में 1999-2001 तक सेवाएं दीं और फिर 2001 में भारत लौट आईं।

डॉ. सुमिता फिलहाल देहरादून के सीएमआई अस्पताल में स्त्री रोग विभाग की प्रमुख हैं। साथ ही, उन्होंने उत्तराखंड में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर कई सामाजिक अभियानों का नेतृत्व किया है, जिनमें मुफ्त स्वास्थ्य जांच शिविर और जागरूकता अभियान शामिल हैं।

यह फेलोशिप उनके समर्पण और सेवा की अंतरराष्ट्रीय पहचान है, जिससे उत्तराखंड और देशभर में उनकी प्रतिष्ठा और बढ़ी है।

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