देहरादून: उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को अब सरकारी नौकरियों में 10% क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिलेगा। धामी सरकार ने इस ऐतिहासिक कदम के तहत आरक्षण से जुड़ा प्रारूप जारी कर दिया है। इससे पहले मार्च में कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी और इसे सदन से पारित कराया गया था। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अब इसे लागू करने का रास्ता साफ हो गया है।
लंबे समय से चल रही थी आरक्षण की मांग
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी लंबे समय से सरकारी सेवाओं में आरक्षण की मांग कर रहे थे। हालांकि, कानूनी अड़चनों और कोर्ट में चल रही याचिकाओं के चलते यह मामला लंबित था। अब सरकार ने आरक्षण का प्रारूप जारी कर आंदोलनकारियों और उनके परिवारों को बड़ी राहत दी है।
आंदोलनकारियों के लिए आरक्षण की शुरुआत कैसे हुई?
- एनडी तिवारी सरकार (2002): पहली निर्वाचित सरकार ने आंदोलनकारियों के लिए विशेष प्रावधान किए। 7 दिन तक जेल में रहे आंदोलनकारियों को सीधी नौकरी और 1-6 दिन जेल में रहने वालों को 10% क्षैतिज आरक्षण का आदेश दिया।
- निशंक सरकार (2010): सभी चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को 10% क्षैतिज आरक्षण का लाभ देने का निर्णय लिया।
- खंडूड़ी सरकार (2011): आंदोलनकारी आश्रितों को भी इस आरक्षण के दायरे में शामिल किया।
कोर्ट में आरक्षण पर लगी थी रोक
2013 में हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने पर स्टे लगा दिया। इसके बाद 2018 में हाईकोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिया। इससे आंदोलनकारियों के लिए आरक्षण की मांग फिर तेज हो गई।
धामी सरकार ने दिखाया मार्ग
धामी सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए 2022 में सदन में एक विधेयक पेश किया और इसे पारित कराया। राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद अब इसका प्रारूप जारी कर दिया गया है।
क्या बोले राज्य आंदोलनकारी?
राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने कहा कि सरकार द्वारा प्रारूप जारी होने से आरक्षण पर चल रहा संशय खत्म हो गया है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि उन आंदोलनकारियों के आश्रितों को इसका लाभ नहीं मिलेगा, जो पहले ही इस योजना का लाभ ले चुके हैं।
आंदोलनकारियों को मिली बड़ी राहत
आरक्षण प्रारूप जारी होने से राज्य आंदोलनकारी और उनके परिवारों को बड़ी राहत मिली है। यह कदम उत्तराखंड राज्य आंदोलन के योगदान को सम्मान देने का महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।