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उत्तराखंड निकाय चुनाव: ओबीसी आरक्षण में बड़ा बदलाव, 14 पालिकाओं और 23 पंचायतों में एक भी सीट आरक्षित नहीं

Uttarakhand civic elections: Big change in OBC reservation, not a single seat reserved in 14 municipalities and 23 panchayats

उत्तराखंड के आगामी निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर बड़ा बदलाव सामने आया है। इस बार राज्य की 14 नगर पालिका परिषदों और 23 नगर पंचायतों में ओबीसी समुदाय के लिए एक भी वार्ड सदस्य की सीट आरक्षित नहीं होगी। यह निर्णय एकल सदस्यीय समर्पित आयोग द्वारा आबादी के आधार पर की गई सिफारिशों के अनुसार लिया गया है।


ओबीसी आरक्षण का नया स्वरूप

2018 में हुए निकाय चुनाव में राज्य के सभी निगम, पालिका और नगर पंचायतों में 14 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू था। लेकिन इस बार, आयोग ने ओबीसी आबादी के अनुसार सीटों का आरक्षण तय किया है। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर, जहां ओबीसी की आबादी कम है, वहां आरक्षण नहीं दिया गया।


मंगलौर और जसपुर में सबसे अधिक ओबीसी आरक्षण

राज्य में नगर पालिका मंगलौर (हरिद्वार) और जसपुर (ऊधमसिंह नगर) में ओबीसी समुदाय को सबसे अधिक प्रतिनिधित्व मिलेगा:

  • नगर पालिका मंगलौर: यहां की ओबीसी आबादी 67.73% है, जिसके चलते 20 में से 10 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित होंगी, जबकि 10 सीटें अनारक्षित रहेंगी।
  • नगर पालिका जसपुर: यहां की ओबीसी आबादी 63.52% है, जिसके अनुसार 20 में से 9 सीटें ओबीसी के लिए, 10 सीटें अनारक्षित, और 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहेंगी।

Uttarakhand civic elections: Big change in OBC reservation, not a single seat reserved in 14 municipalities and 23 panchayats

अन्य नगरपालिकाओं और पंचायतों में ओबीसी को प्रतिनिधित्व नहीं

आयोग की सिफारिशों के चलते राज्य की 14 नगर पालिकाओं और 23 नगर पंचायतों में ओबीसी समुदाय के लिए कोई भी सीट आरक्षित नहीं की जाएगी। यह पहली बार है जब वार्ड सदस्य के लिए ओबीसी आरक्षण पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है।


नए आरक्षण के आधार पर चुनाव

निकाय चुनावों में इस बार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ही आरक्षण लागू होगा। यह निर्णय ओबीसी आबादी के अनुपात पर आधारित है, जिससे कई क्षेत्रों में ओबीसी समुदाय को प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।


प्रभाव और चर्चा का विषय

यह बदलाव आगामी निकाय चुनावों में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन सकता है। ओबीसी आरक्षण में कमी को लेकर संबंधित समुदायों में असंतोष की संभावना है, जबकि उच्च ओबीसी आबादी वाले क्षेत्रों में इस निर्णय का स्वागत किया जा सकता है।

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